________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परिभाषाप्रकरण
(३४१)
परन्तु वमन विरेचन . और शोणित मोक्षण यह मान शुष्क द्रव्योंके लिए है। आर्द्र (फस्त) में १३॥ पलका प्रस्थ माना जाता है। और द्रव पदार्थोंके लिए इससे द्विगुण मान सुश्रुते चोक्तम् (चि. स्था. अ.३१) समझना चाहिए।
चरक और सुश्रुतके मानकी परस्पर तुलना “पल कुडवादीनामतो मानन्तु व्याख्यास्यामः ।
। चरकोक्त मान में २ द्रंक्षण= ४ शाण=१२ तत्र द्वादश धान्यमाषा मध्यमाः सुवर्णमाषक: ते षोडश सुवर्णः । अथ मध्यम निष्पावा वा,
माषक या (१२४३२=) ३८४ धान्यमाषकका कर्ष एकोनविंशतिर्धरणम्. तान्यर्द्धतृतीयानिः कर्षः;
माना गया है और सुश्रुतोक्त कर्ष में १६
सुवर्ण माषक-(१६४१२=) १९२ धान्य माषक ततश्चोर्द्ध चतुर्गुणमभिवर्द्धयन्तः पल-कुडव- |
| होते हैं. इससे सिद्ध होता है कि चरकोक्त प्रस्थाढक-द्रोणा इत्यभिनिष्पधन्ते । तुला पलशतं ता विंशतिर्भारः । शुष्कानामिदं मानमार्द्र
मान सुश्रुतोक्त मानसे दो गुना है। द्रवाणाञ्च द्विगुणमिति ।" सुश्रुतोक्त मान
मानसारम् अब पल कुडवादि नामसे मानकी व्याख्या
शाणः कोलश्च कर्षश्च शुक्तिश्च पलमेव च ।
प्रसृतं कुडवश्चापि शरावः प्रस्थ एव च ॥ करते हैं:
अ ढकश्चाढकोऽर्द्धद्रोणश्च द्रोण एव च । १२ मध्यम धान्यमाष = १ सुवर्ण माषक
सूर्पो गोणी च खारीच द्विगुणञ्चोत्तरोत्तरम् ॥ १६ सुवर्ण माषक = १ सुवर्ण
शाण, कोल, कर्ष, शुक्ति, पल, प्रसृत, अथवा
कुडव, शराव, प्रस्थ अ ढक, आढक, अर्द्ध१२ मध्यम निष्पाषा). सव मालक | द्रोण, द्रोण, सूर्प, गोणी ओर खारीका मान
उत्तरोत्तर द्विगुण होता है यथा, शाणसे कोल १९ सुवर्णमाषक = १ धरण
दो गुना, कोलसे कर्ष दो गुना और कर्षसे धरण (१६ माषक)="१ कर्ष
शुक्ति दो गुनी इत्यादि । = १ पल
माषशाणकर्षपलकुडवप्रस्थाढकाः । ४ पल = १ कुडव
द्रोणो गोणी भवन्त्येते पूर्वपूर्वाश्चतुर्गुणाः ॥ = १ प्रस्थ
माष, शाण, कर्ष, पल, कुडव, प्रस्थ, ४ प्रस्थ = १ आढक
आढक, द्रोण और गोणी का मान उत्तरोत्तर ४ आढक = १ द्रोण १०० पल
चार गुना होता है। = १ तुला
शुष्काद्रव्यभेदेन मानम् २० तुला = १ भार
शुष्कद्रव्ये तु या मात्रा चास्य द्विगुणा हि सा । ____ + तानि धरणानि अतृतीयानि अद्धोशं तृतीयांश- शुष्कस्य गुरुतीक्ष्णत्वात्तस्मादर्द्ध प्रकीर्तितम् ॥ म्चेति स्वतः एकोनविंशतिषिकस्यामद्धोनदश तृतीयांशश्च क्यों कि शुष्क द्रव्य, गीले द्रव्योंकी अपेक्षा द्वितृतीयांशोन सप्त मिलित्वा षडांशोन षोडशेति । अधिक गुरु एवं तीक्ष्ण होते हैं अत एव आर्द्र धरण अर्थात १० माषकका अईतृतीय (भाधा और (गीले) द्रव्योंका मान शुष्ककी अपेक्षा द्विगुण तीसरा भाग)९३+६=१५१ होता है जर्थात १६ माषक | ग्रहण करना चाहिए अर्थात् शुष्क द्रव्योंके में कुछ कम होता है इसे पूरे १६ माषक मान लेने में | स्थानमें गीले द्रव्य काममें लाए जायं तो कोई विशेष अन्तर महीं भा सकता ।
लिखित परिमाणसे दो गुने लेने चाहिएं ।
(लोबिया)
= १ सुवर्ण माषक
४ कर्ष
For Private And Personal Use Only