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ककारादि-रस
चौथा भाग स्वर्ण भस्म तथा कान्त लोह और वैक्रान्त भस्म मिलाली जाय तो उसका नाम "कनक कन्दर्प रस" हो जाता है ।
इसे १ माशे की मात्रानुसार मिश्री, शहद और घीमें मिलाकर अल्प गरम गोदुग्ध के साथ २१ दिन तक सेवन करने से धातुक्षीणता दूर होकर अत्यन्त काम वृद्धि होती है ! व्यवहारिक मात्रा १ रत्ती ।
[९४१] कनकसंकोचरस : (र. र । कुष्ठे ) मृतस्वर्णाभ्रकं शुण्ठीं शुद्धभूतं त्रिभिः समम् । अम्लैर्मर्यन्तु तद्गोलं पिष्ट्वा तुल्यं च गन्धकम्। कटुतैलयुतं पाच्यं लौहे च मृदुनाग्निना । द्रवैजीर्ण विचूथ वह्निमूलकटुत्रिकैः ॥ स्वग्विडङ्गविषैस्तुल्यैः त्रिगुणं त्रिफलाविषात । अजामृत्रे दिनं पिष्ट्रा गुञ्जकां भक्षयेद्वटीम || निष्कैकं बाकुचीतैलं पिवेद्विस्फोटकुष्ठजित् । रसः कनकसंकोचोद्विगुंजं योजयेत्क्रमात् ॥
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सोनेकी भस्म, अभ्रकभस्म और सोंठ प्रत्येक १–१ भाग, शुद्ध पारा ३ भाग एवं शुद्ध गन्धक ६ भाग लेकर कांजीमें घोटकर गोला बनावें और फिर उसे कड़वे तेलमें लोहे के पात्र में मन्दाग्नि पर पकावें । जब जलांश बिलकुल सूख जाय तो उस का चूर्ण करके उसमें चीतेकी जड़, त्रिकुटा, दालचीनी, बायबिडंग और शुद्ध मीठा तेलिया १-१ भाग और त्रिफला ३ भाग, इनका चूर्ण मिलाकर १ दिन तक बकरीके मूत्रमें घोटकर १-१ रत्तीकी गोलियां बनावें ।
१ रत्ती, आधा माशा या १ माशे की मात्रा में सेवन करावें । इसका नाम "हेमांग सुंदर
रस" है ।
(२८१)
इसे १ रत्तीकी मात्रानुसार १ निष्क ( २ - ३ रत्ती) बावचीके तेलके साथ सेवन करनेसे विस्फोटक और कुष्ठका नाश होता है ।
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इसकी मात्रा क्रमशः बढ़ा कर २ रत्ती तक की जा सकती है।
[ ९४२] कनकसिंदूररसः
(वृ. नि. र. । क्षय.)
रसः कनकभाङ्गिकः (?) कनकमाक्षिकस्तालकः शिलारसकगंधका रससमाः सतुत्था इमे । विमर्ध पयसा रवेः सकल मे तदस्योपरि द्रवैः प्रतिदिनं पृथक् तदिति भावयेद् बुद्धिमान् जयामुनिकलिप्रियादहनभृङ्गयासोद्भवैविभाव्य च रसस्ततः सुदृढगोलकं स्वेदयेत् । मृगांकवदयार्द्रकद्रवभरेण तं सप्तधा विमर्थ च कटुत्रयांबुभिरयं क्षयस्यांतकृत् ॥ रसः कनकसिंदूरी भवतिसन्निपातेप्ययं सदार्द्रकरसैस्तथा पवनगुल्मशूलादिहत् । सविश्वघृत योजितः सकलमत्र पथ्यं मृगांकवदथापरं किमपि नैव योज्यं क्वचित् ॥
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शुद्ध पारा, स्वर्ण भस्म, सोनामक्खी भस्म, शुद्ध हरताल, शुद्ध मनसिल, खपरिया भस्म, गन्धक और शुद्ध नीला थोथा : बराबर २ लेकर कज्जली करके आकके दूध, अरनी, अगस्ति, बहेडा, चीता, भांगरा और बांके रसकी एक एक भावना दें। फिर उसका गोला बनाकर “मृगांक रस" की विधिसे पकायें फिर अदरक और सोंठ, कालीमिर्च और पीपल के रसकी ७-७ भावना दें। यह रस क्षयका नाश करता है । इसे अद्रक रसके साथ देनेसे सन्निपात सोंठके चूर्ण तथा घृतके साथ देनेसे वातज गुल्म और शूलादि नष्ट होते हैं। इसके सेवनमें