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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८०) भारत-भैषज्य रत्नाकर। ततस्तु रक्तिकाम त्य माषकं जीरकस्य च। शुद्ध पारे और शुद्ध गन्धक की कज्जली को मापैकं लवणस्यापि पर्णे कृत्वा निधापयेत् ॥ गोमूत्र और अरण्ड के तेल के साथ पीनेसे ज्वरे त्रिदोषजे घोरे जलमुष्णं पिबेदनु। | अण्डवृद्धि का अत्यन्त शीघ्र नाश होता है। छया शर्करया दद्यात्सामे दद्यात्तथा गुडम् ॥ [९३९] कटुकाचं लौहम् (र. र. । शोथ.) क्षये छागभवं क्षीरं प्रदद्यानुपानकम् । कटुका त्र्यूषणं दन्ती विडंगं त्रिफला तथा। रक्तातिसारे कुटजमूलवल्कलजं रसम् ॥ चित्रको देवदारुश्च त्रिवृद्दारुणपिप्पली ॥ रक्तवान्तो तथा दद्यादुदुम्बरभवं जलं। चूर्णान्येतानि तुल्यानि द्विगुणं स्यादयोरजः। सर्वव्याधिहरश्चायं गन्धकः कजलीकृतः॥ क्षीरेण तुल्यमेतच्च श्रेष्ठं इवयथुनाशनम् ॥ आयुर्वद्धिकरश्चैव मृतं चापि प्रबोधयेत् ॥ । कुटकी, त्रिकुटा, दन्ती, बायबिडंग, त्रिफला, ___कटेली, संभालू और नाटाकरंजवे के रसको चीता, देवदारु, निसोत और गजपीपल । प्रत्येक एक ठीकरे में डालकर उसमें गन्धक का चूर्ण | का चूर्ण १-१ भाग और लोह चूर्ण सबसे दोगुना डालकर मंदाग्नि पर रक्खें । जब गन्धक पिंगल | लेकर एकत्र मिलाकर दूध के साथ सेवन करने जाय तो उसमें समान भाग पारद डाल कर उसे | से शोथ (सुजन) रोग नष्ट होता है। जल्दीसे मिलाकर नीचे उतार लें और (खरलमें | [९४०] कनककन्दर्प रसः (र. र. । वाजी.) डालकर) खूब घोटें; यहां तक कि घुटते २ कज्जल | पूर्वसिद्धे रसे क्षिप्त्वा रसपादेन काश्चनम् । के समान स्याह हो जाय। सेवन विधि-सन्निपात ज्वर में-१ रत्ती विमर्यापि विधानेन सुपिष्टश्च विनिक्षिपेत् ।। कान्तवैक्रान्तयोरेवं क्षिप्ते तत्र विधानतः। यह कज्जली और १ माशा जीरे का चूर्ण तथा १ माशा सेंधानमक मिलाकर पान में रखकर खिलावें मधुरत्रयसंयुक्तं माषमात्र दिने दिने । और ऊपर से गरम पानी पिलावें । वमन में लीड्ढ्वानुपानं पातव्यं मन्दतप्तं गवां पयः । चीनी (खांड) के साथ, आमदोष में गुड़ के त्रिसप्तदिवसैःक्षीणो भवेदक्षीणधातुकः॥ उर्द्धलिंगःसदातिष्ठेद्रावयेद्वनिताशतम् ॥ साथ, क्षय में बकरी के दूध के साथ, रक्तातिसार ___ पूर्वोक्त (हेमांग सुंदर) रसमें यदि पारे का में कुड़े की जड़ की छाल के रसके साथ और खून की उल्टी में गूलर के रस के साथ देना १ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, सोनेका भस्म और लोहभस्म बराबर २ लेकर तांबेके खरचाहिये। लमें कज्जली बनावें फिर उसे सरा और यह कज्जली सर्व व्याधिनाशक, आयुवर्द्धक | काले धतूरे के स्वरसमें ३-३ दिन तक स्वरल और आसन्नमृत्यु मनुष्य को भी जीवनदान देने करें। इसके पश्चात् ३ दिन तक सरसों के तेल वाली है। | में घोटकर धूपमें सुखावें फिर उसे यथा विधि [९३८] कजली (३)(वृ. नि. र. । अण्डवृद्धि) बालुका यन्त्र में उस समय तक पकावे जब तक कि बालु गरम न हो जाय । इसके पश्चात् गोमूत्रैरण्डतैलाभ्यां रसगंधककजली। | उसे स्वांगशीतल हो जाने पर निकाल कर पीत्वा निहति सहसा पदि वृषणसंभवाम् ॥ रोग और रोगी को शारीरिक अवस्थानुसार For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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