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ककारादि-रस
(२७९)
[९३१] कर्कोटक्यादि नस्यम् मिर्च, पीपल और बच को बकरे के मूत्र में पीसकर
___ (वृ. नि. र. । विष.) नस्य देने से तन्द्रिक सन्निपात का नाश होता है । वंध्याकर्कोटकीमूलं छागमूत्रेण भावितम् ।। [९३४] कृष्णादिनस्यम् (बृ. नि. र. सन्नि.) नस्य कांजिकसंपिष्टं विषोपहतचेतसः ॥ अपनयति कंठकुब्ज कृष्णापामार्गयुड्नस्यम् ।
बांझककोड़े की जड़ को बकरी के मूत्र की | अथ हंति सलिलसहितं भावना देकर रक्खें । इसे कांजी में पीसकर नस्य | त्रिकटुककतुंबिनीनस्यम्॥ देने से विषका प्रभाव नष्ट होता है। ___ पीपल और चिरचिटे के चूर्ण की अथवा पानी [९३२] कुमारीकंदनस्यम् (वृ.नि.र. । काम.) में पिसे हुवे त्रिकुटे और कड़वी तोरी के बीजों किंवा तोयेन सा पिष्टः कुमारीकंदनस्यतः। | की नस्य देनेसे कंठकुब्ज सन्निपात का नाश जायते[१] कामलोपेता पित्तनेत्रांतकामला(१)। होता है।
घीकुमार की जड़ को पानी में पीसकर नस्य | [९३५] कलिंगादि अवपीडनम् देने से कामला और कामला से उत्पन्न हुआ नेत्रों
(वृ. नि. र.। नासा.) का पीलापन नष्ट होता है।
कलिंगहिंगुमरिचं लाक्षाखरसकट्फलैः । [९३३] कुष्ठादिनस्यम् (पृ. नि. र.। सन्नि.) | कुष्ठोग्राशिनु जंतृप्नैरवपीडः प्रशस्यते ।। कुष्ठगवाक्षीनागरनिशाद्वयमरीचकणावचायुक्तम्। इन्द्रजौ, हींग, कालीमिर्च, लाख का स्वरस, बस्तसलिलेन पिष्टं तंद्रिकहिस्रं भवेनस्यम् ॥ कायफल, कूठ, बच, सहंजना और बायबिडंग से कूट, इन्द्रायन, सौंठ, हल्दी, दारुहल्दी, काली- | अवपीड़न करने से नासा रोगों का नाश होता है।
__ अथ ककारादि रसप्रकरणम् [९३६] कजली (१) (र. रा. सु. । ज्व.) । अनुपान भेदसे समस्त रोगों का नाश करनेवाली है। शुद्धस्तं तथा गन्धं खल्वे तावद्विमईयेत् । [९३७] कजल्याः प्रकारान्तरम् (२) सूतं न दृश्यते यावत्किन्तु कालबद्भवेत् ।।
(र. रा. सुं. । ज्व.) एषा कालिकाख्याता बृंहणी वीर्यवर्द्धनी।। कंटकारी सिन्धुवारस्तथा पूतिकरञ्जकम् । नानानुपानयोगेन सर्वव्याधिविनाशिनी ॥ । एतेषां रसमादाय कृत्वा खर्परखण्डके ।। एतत्कजलिका विधानं रसपदीपे प्रोक्तम् ॥ प्रक्षेप्यं गन्धकं तत्र तां च मृद्वग्निना दहेत् । ___शुद्ध पारद और शुद्ध आमलासार गन्धक | गन्धके स्नेहतापन्ने तत्समं पारदं क्षिपेत् ॥ को खरल में डालकर इतना घोटें कि पारद अदृश्य | मिश्रीकृत्य ततो द्वाभ्यां द्रुतं तमवतारयेत् । हो जाय और दोनों चीजें मिलकर कज्जल के आमदयेत्तथा तत्तु यथा स्यात्कजलप्रभम् ॥ समान हो जाय । इसका नाम "कज्जली" है। १ औषधियोंका कल्क बनाकर उसका रस
यह (कज्जली) बृंहणी, वीर्य वर्द्धनी और नाक में निचोड़नेको नाम “अवपीडन' है।
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