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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७१) भारत-भैषज्य रत्नाकर [९१०] कुष्ठादिलेपः (१) (वृ.नि.र.शिरो.रो.) [९१४] कुष्ठाविलेपः (५) कुष्ठमेरण्डमूलं च नागरं तक्रपेषितम्। (वृ. नि. र. । भगन्द. नि.) कवोष्णं च शिरपीडो मात्रालेपनतो हरेत् ॥ कुष्ठं त्रिवृत्तिलादन्ती मागधी सैंधवं मधु । ____ कूठ, अरण्डमूल और सोंठको तक (छाछ) में | रजनी त्रिफलातुत्थं हितं स्याद्वणलेपनम् ।। पीसकर किञ्चित गरम करके लेप करनेसे शिरपीड़ा कूठ, निसोत, तिल, दन्ती, पीपल, सेंधानमक, शान्त होती है। शहद, हल्दी, त्रिफला और तृतिया का लेप घावों [९११] कुष्ठादिलेपः (२) (वृ.नि.र.। शि. रो.) के लिए लाभदायक है। कुष्ठमेरण्डमूलं च लेपःकांजिकपेषितः। [९१५] कृष्णादिलेपः (१) . शिरोति वातजां हन्यात्पुष्पं वा मुचकुंदजम् ॥ (कृ. नि. र; ग. नि. | व्रणशो.) कूठ और अरण्डमूलको अथवा मुचकुन्दके | कृष्णापुराणपिण्याकशिशु त्वसिक्ताशिवा । फूलोंको कांजीमें पीसकर लेप करनेसे वातज शिर- मूत्रपिष्टःसुखोष्णोयं लेपश्च श्लेष्मशोथजित् ।। पीडा शान्त होती है। पीपल, पुरानी खल, सोहजने की छाल, रेत [९१२] कुष्ठादिलेपः (३) और हैड़ को गोमूत्र में पीसकर किञ्चित गरम (वृ. नि. र. । शिरो. रो.) करके लेप करने से कफज सूजन का नाश होता है। कुष्ठमेरण्डमूलं वा चक्रमर्दकमूलकम् । [९१६] कृष्णादिलपः (२) (वृ. नि. र; ग. नि.। शि. रो.) आरनालेन पिष्टं तल्लेपो हन्ति शिरोरुजम् ॥ कूठ, अरण्डमूल ओर पवांड़ की जड़को कांजी कृष्णाम्बुशुंठीमधुकं शताह्रोत्पलवालकैः। में पीस कर लेप करने से शिरः शूल शान्त होता है। जलपिष्टैः शिरोलेपः सद्यः शूलनिवारणः ॥ ___पीपल, सुगन्धबाला, सोंठ, मुल्हैठी, सोया, [९१३] कुष्ठादिलेपः (४) नीलोफर और खस को पानी में पीसकर लेप करने (च. द.। अग्निमां;ग. नि. अजीणे; यो. र. विसूचि.) से शिरपीडा अत्यन्त शीघ्र शान्त होती है। कुष्ठसैंधवयोः कल्कं चुक्रतैलसमन्वितम् ।। । [९१७] केसरषष्ठयोगः विधूच्या मदन काष्ण खल्लाशूलानवारणम् ।। (वृ. यो. त.। १२० त; यो. र. शि. रो; च. द. ।) कूठ और सेंधानमक को पानी में पीसकर | कुष्ठं मूलकबीजं प्रियंगवः सर्षपा दुरालम्मा। चूके (चौपतिया) के तेल में मिलाकर कुछ गरम करके मालिश करने से खल्ली, शूल (हाथ पैरों का | एतत्केसरषष्ठं निहन्ति चिरकालजं सिम्मम् ॥ कूठ, मूली के बीज, फूलप्रियंगु, सरसों, ऐंठना) नष्ट होता है। धमासा और केसर का लेप करने से पुराना सिम * दृष्टफलोऽयं योगः। नष्ट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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