________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ककारादि-अंजन
(२७७)
__अथ ककारादि धूपप्रकरणम् [९१८] कर्पूरधूपः (वृ. नि. र. । अर्श.) गृध्रोलूकपुरीषाणि यवानिमिश्रितं घृते ॥ रक्तौधशांतये देयं गुदे कर्पूरधूपनम् । संध्योरुभयोः कार्यमेतद्धृपनं शिशोः ॥ ___ यदि बवासीर से अधिक रक्त निकलता हो । निर्मली के फलों को प्रातः और सायंकाल तो गुदा में कपूर की धूनी देनी चाहिए। कुलथी, शंख का चूरा, गन्धक, गीध और उल्लू [९१९] कुलत्यादि धूपः (वृ. नि. र.। बाल.) | की विष्टा और अजवायन को धीमें मिला कर कुलत्थाः शङ्खचूर्णे च प्रदेयः पूर्वगन्धिकः। । धूनी देना हितकारक है।
अथ ककारादि अंजनप्रकरणम् [९२०] कणाद्यंजनम् (१) । की गिरी, हल्दी, आमला, हैड़, बहेड़ा, सरसों,
___ (वृ. नि. र. । नेत्र.) हींग और सोंठ को बकरे के मूत्र में पीसकर कणाछागशकुन्मध्ये पक्त्वा तद्रसपेषिता। । गोलियां बनावें। अचिराद्धंति नक्तांध्यं तद्वत्सलौद्रमूषणम् ॥ इन्हें आंखों में आंजने से बेहोशी, चित्तभ्रम,
पीपल को बकरी की मांगनियों के बीच में अपस्मार, भूतदोष, शिर और आंखोंके रोग तथा रखकर पकायें और फिर उन्हें बकरी की मींगनियों भ्रम का नाश होता है। के रसमें ही खरल करें। इस चूर्ण का अंजन [९२२] कतकफलादिः (१) (यो. र.। नेत्र.) करने से रतौंधे का नाश होता है। कतकस्य फलं घृष्ट्रां मधुना नेत्रमञ्जयेत् । ___ कालीमिर्च को शहद में मिला कर अंजन | ईषत्कर्पूरसहितं तत्स्यानेत्रप्रसादनम् ॥ करने से भी रतौंधा नष्ट होता है।
निर्मली के फलों को घिसकर उसमें जरासा [९२१] कणाद्यंजनम् (२) (पृ. नि.र. सन्नि.) | कपूर मिला कर शहद के साथ आंखोमें आंजने कणोषणोग्रालवणोत्तमानि | से नेत्र स्वच्छ होते हैं।
करञ्जबीजक्षणदामलानि । | [९२३] कतकफलादिः (२) । पथ्याक्षसिद्धार्थकहिंगुशुंठि
(यो. र. । नेत्र.) युतानि वस्ताम्बुविमिश्रितानि ॥ कतकस्य फलं शङ्ख सैन्धवं त्र्यूषणं सिता । पिष्ट्वा गुटीयं नयने विधेया | फेनो रसाञ्जनं क्षौद्रं विडंगानि मनःशिला ॥
प्रचेतनेति प्रथितान्वितार्था । सर्वमेतत्समं कृत्वा नारीक्षीरेण पेषयेत् । चित्तश्रमापस्मृतिभूतदोष
तिमिरं पटलं काचमर्मशुक्रं व्यपोहति ।। शिरोक्षिरोगभ्रमनाशहेतुः॥ निर्मली के फल, शंख, सेंधानमक, त्रिकुटा, पीपल, कालीमिर्च, बच, सेंधानमक, करंजवे मिश्री, समुद्रफेन, रसौत, शहद, बायबिडंग और
For Private And Personal Use Only