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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-लेप (२७५) सुमनप्रवालयुक्तो लेपः कुष्ठापहः सिद्धः॥ को तक्रमें पिसकर मंगलके रोज़ लेप करनेसे सिष्म सफेद कनेरकी जड़, कुड़ा, करञ्जवेकी छाल, । (सीप)का नाश होता है। दारुहल्दी और चमेलीके पत्तोंको पीसकर लेप करने [९०६] कांचनीलेपः से कुष्ठका नाश होता है। (वृ. नि. र. । अर्श.) [९०३] करंजादिलेपः कांचनी कुसुमं चुणे शंखचूर्ण मनाशिला। (वृ. नि. र.। क्षु. रो; व. से.) गजपिप्पलिसंतोयैलेंपो ह्यर्थी कुठारकः॥ करञ्जबीजं रजनी कासीसं पत्रकं मधु। हल्दी, लौंग, शङ्खका चूर्ण, नसिल और गजरोचना हरितालं च लेपोयमलसे हितः॥ पीपलको पानीमें पीसकर लेप करनेसे बवासीरके ___ करंजवेकी गिरी, हल्दी, कसीस, पनाक,शहद, | मस्से नष्ट होते हैं। गोरोचन और हरताल का लेप करनेसे अलस [९०७] कासमविलेपः (खाखों)का नाश होता है। (वृ. नि. र., वृ. मा.। त्वग्दो.) [९०४] कसेर्वादिलेपः (वृ. नि.र.। विस.) | | कासमर्दकबीजानि मूलकानां तथैव च । गंधपाषाणमिश्राणि सिध्मानां परमौषधम् ॥ कशेरुपृङ्गाटकपमगुञ्जा ___कसौन्दीके बीज, मूलीके बीज और गंधकका सशैवला:सोत्पलपयकश्च। लेप सिध्मके लिए अत्यन्त उपयोगी है। वस्त्रान्तराःपित्तकृते विसर्प लेपो विधेयः सघृतः सुशीतः॥ | [९०८] कासीसादिलेपः (वृ.नि.र.। भु-रो.) कसेरु, सिंघाड़ा, कमल, गुञ्जा (चौंटली), | कासीसरोचनातुत्थहरितालरसाजनैः। शैवाल, नीलोफर और पनाकको पीसकर धीमें मिला अम्लपिष्टैःप्रलेपोयं मुश्ककण्डाहितनैः ॥ कसीस, गोरोचन, तृतिया, हरताल और कर लेप करें, परन्तु लेप के नीचे कपड़ा लगा रसौतको कांजीमें पीसकर लेप करनेसे अण्डकोषों लेना चाहिये । इससे पित्त विसर्प नष्ट होता है। | की खाज और अहिपूतनाका नाश होता है। एवं ठंडक पडती है। * [९०९] कुमार्यादिलेपः [९०५] कार्पासादिलेपः (शा. ध. उ. खै. अ. १३) (वृ. नि. र.। त्वग्दो. ग., नि. कुष्ठा.) | कुमारिकाग्निपत्रैर्वा दाडिमीपल्लवैरपि । कार्यासिकापत्रविमिश्रकाक | वचाहरिद्राविश्वैर्वा तथा नागरगैरिकैः॥ जंघाकृतो मूलकबीजयुक्तः। घीकुमार और चीतेके पत्तोंको अथवा अनार सक्रेण लेपः क्षितिपुत्रवारे, के पत्तों या बच, हल्दी और सोंठको किंवा सोंठ सिध्मानि सद्यो नयति प्रणाशम् ॥ | और गेरूको पानी में पीसकर लेप करनेसे आंखोंके कपासके पत्ते, काकजंघा और मूलीके बीजों | समस्त रोग नष्ट होते हैं। + * श्री चौबे दसरामजीके मतानुसार लेप + माखों की सुखी और सड़क आदिक करके उसके ऊपर कपडा बांध देना चाहिये। | लिए यह लेप उत्तम प्रतीत होता है। (भनु०) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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