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ककारादि-तैल
(२६३) [८६७] काश्मर्यादि तैलम् | सेर गोमूत्रके साथ २ सेर तेल पकावें। (वृ. नि. र.। क्षु. रो; व. से.)
इस तेलके लगानेसे बवासीरके मस्से इस काश्मयाँ मूलमादौ सहचर- प्रकार गिर जाते हैं मानो क्षारसे गिराए गए हैं। कुसुम केतकस्यापि मूल
[८६९] किरातादि तैलम् लौहं चूर्ण सगं त्रिफलजलयुतं
(धन्च० । ज्व. चि.) तैलमेभिः पचेद्यः।
| मूर्वा लाक्षा हरिद्रे द्वे मंजिष्ठा सेन्द्रवारुणी। कृत्वा लोहस्य भांडे क्षितितलनिहितं
हीबेरं पुष्करं रास्ना कपिवल्ली कटुत्रयम् ॥ स्थापयेन्मासमेकंकेशाः काशप्रकाशा
पाठा चेन्द्रयवश्चैव लवणत्रयसंयुतम् । अपिमधुपनिमा अस्य योगाद्भवति ॥
वासकाकेश्यामा दारु महाकालफलं तथा । खम्भारी की जड़, पियाबांसे के फूल, केतकी की जड़, लोहे का बुरादा, भांगरा और त्रिफले का
दधिमन्यारनालेन किरातेन च संपवेत् । काथ । इनसे तेल पकाकर लोहे के बरतन में भर
प्रस्थं प्रस्थं समादाय तैलपस्थं विपाचयेत् ॥ कर जमीन में दबा दें और एक मास तक वहीं
पित्तयुक्तज्वरं चैव सन्ततं सततं तथा। दबा रहने दें।
धातुस्थमस्थिमजास्थं ज्वरं सर्व व्यपोहतिम् ॥ इस तेलसे कांस के समान सफेद बाल भी | कामलां ग्रहणीं चैव अतिसारं हलीमकम् । भौं रेके समान काले हो जाते हैं।
प्लीहपाण्डुश्वयधुंश्च नाशयेन्नात्र संशयः॥ ८६८] कासीसादितैलम शा.ध.म.ख.९) | नास्ति तैलं वरं चास्मात् ज्वरदपेकुलान्तकृत कासीसं लांगली कण्ठं शण्ठी कृष्णा च सैन्धवस मूर्वा, लाख, हल्दी, दारुहल्दी, मजीठ, इन्द्रामनःशिलाश्चमारश्च विडंग चित्रको पुषः ॥ यन, सुगन्धवाला, पोखरमूल, रास्ना, गजपीपल, दन्ती कोशातकीबीज हेमाहू हरितालकम। | त्रिकुटा, पाठा, इन्द्रजौ, सेंधानमक, काला नमक, कल्कैः कर्षमितेरेतैस्तैलप्रस्थं विपाचयेत ॥ बिडनमक, बासा, आक, काली निसोत, देवदार स्नुपर्कपयसी दद्यात्पृथक् द्विपल संमिते।
| और इन्द्रायनका फल। इनके कल्क तथा दधिचतुर्गुणं गवां मत्रं दत्वा सम्यक् प्रसाधयेत ॥ मंथ (दहीका तोड़), आरनाल (कांजी) और चिराकथितं खरनादेन तैलमोंविनाशनम् ।
| यतेके २-२ सेर काथके साथ २ सेर तेल पकावें। क्षारवत्पातयत्येतदीस्यभ्यंगतो भृशम् ॥ यह तैल पित्तयुक्त ज्वर, संतत ज्वर, सतत
कसीस, कलिहारी, कूठ, सोंठ, पीपल, सेंधा- | ज्वर तथा धातुगत और अस्थिगत ज्वर आदि सब नमक, मनसिल, कनेर, बायबिडंग, चीता, बांसा, प्रकारके ज्वरों और कामला, संग्रहणी, अतिसार, दन्ती, कड़वी तोरीके बीज, धतूरा और हरताल हलीमक, तिल्ली, पांडु और सूजनका नाश करता प्रत्येक १।-१। तोला । सेहुंड (सेंड) और आक है। ज्वरोंका नाश करनेके लिये इससे उत्तम कोई का दूध २०-२० तोला। इनके कल्क तथा ८ । और तैल नहीं है।
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