SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६२) भारत-वैषज्य-स्नाकर [८६०] करवीराद्यं तैलम् (१) (र. र. । यो. व्या; व. से. स्त्री. रो. वृ. यो. (. र. । नासा.) त. त. १३३) रक्तकरवीरपुष्पं जात्यास्तथाशनमल्लिकाश्च । करभल्लातकशंखचूर्ण क्षारो एतैः समस्तैस्तैलं नासाझे नाशनं पकम् ॥ - यवानां च मनः शिला च। ____ लाल कनेर के फूल, चमेली के फूल, असना तैलं विपकं हरितालमिश्रं और मल्लिकासे पकाया हुआ तैल नासार्श (नाकके रोमाणि निर्मूलयति क्षणेन ॥ मस्सो) का नाश करता है। ___ कपूर, भिलावा, शंखका चूर्ण, जवाखार और [८६१] करवीराचं तेलम् (२) मनसिल से पका हुआ तैल हरताल मिलाकर लगाने से बाल गिर जाते हैं। (यो. र. । भग.) [८६५] कलिंगाच तैलम् करवीरनिशादन्तीलाङ्गलीलपणाग्निभिः ।। । (र. र. । नासा. रो; ग. नि. नासा. ४) मातुलंगार्कपयमा पचेत्तैलं भगन्दरे । कलिंगहिंगुमरिचलाक्षासुरसकट्फलैः । कनेर, हल्दी, दन्ती, कलिहारी, सेंधानमक, बिजौरा नीबू और आकके दूध से पकाया हुआ तैल, कुष्ठोग्राशिग्रुजन्तुप्रैरवपीडः प्रशस्यते । | तैरेवमत्रसंयुक्तैःकटुतैलं विपाचयेत् । भगन्दरका नाश करता है। अपीनसे पूतिनस्ये शमनं कीर्तित परम् । [८६२] कथूरतैलम् इन्द्रजौ, हींग, कालीमिर्च, लाख, तुलसी, (भा. प्र. । नाडी ब्र.) कायफल, कूठ, बच, सहजना और बायबिडंग के कर्पूरकरसे तैलं पुरसिन्दूरकल्कितम् ।। कल्क तथा गोमूत्रसे कड़वा तेल पकाकर उसकी पामा दुष्टत्रणं नाडी हन्यात्सर्वव्रणान्तकृत् ॥ नसवार लेनेसे पीनस और पूति नस्य (नाकसे बदबू ___ कपूरकचरीके कषाय (या स्वरस) और गूगल आना) नष्ट होता है। तथा सिन्दुर के कल्क से पकाया हुजा तैल, पामा, [८६६] काकमाचीतैलम् (र. र. क्षु. रो.) दुष्ट व्रण, नाडी व्रण (नासूर) और अन्य सब प्रकारके | काकमाचीरसे सिद्धं कटुतैलं चतुः पलम् । घावोंका नाश करता है। मनःशिलासोमराजीबीजसिन्दूरगंधकैः ।। [८६३] कर्णामयनं तैलम् शाणमात्रेतदभ्यंगाद्धंन्त्यवश्यमरुषिकाम् । (र. र.स. अ. २४) पामां विचचिंकाश्चैव तथान्याञ्छिरसो व्रणान्॥ कुष्ठशुण्ठीवचाहिंगुशताबाशिग्रु सैन्धवैः। कल्क द्रव्य-मनसिल, बाबची, सिंदूर और पस्तमूत्रैः शृतं तैलं सर्वकर्णामयापहम् ।। । गन्धक । प्रत्येक ३०-३० रत्ती । कूठ, सोंठ, बच, हींग, सोया, सहजना, सेंधा इस कल्क और मकोय के रसके साथ आधा और बकरे के मूत्रसे पकाया हुआ तैल सब प्रकारके | सेर कड़वा तेल पकावें । इसकी मालिश करने से कर्ण रोगोंका नाश करता है। अरुषिका, पामा, विचर्चिका और शिरके घावों का [८६४] कर्पूरादि तैलम् | अवश्य नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy