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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुवासन बस्ति हरड़, नागरमोथा, धनियां, लाल चन्दन, पद्माख, बांसा, इन्द्रयव, खस, गिलोय, अमलतास का गूदा, पाठा, सोंठ, और कुटकी । इनका क्वाथ बनाकर उसमें पीपलका चूर्ण डालकर पीने से त्रिदोषज्वर, पिपासा, खांसी, दाह, प्रलाप, श्वास, तन्द्रा, मल, मूत्र और अपान वायुका विबन्ध, वमन, शोष और अरुचिका नाश होता है तथा अग्नि दीप्त होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९ ) [७] अभयादि क्वाथः (३) ( वृ. नि. र., भा. ४ । ज्वर चि. ) अभयापर्पटमुस्ताकटुकीशम्पाकगोस्तनी क्वाथः । पीतः करोति नाशं रुग्दाहरुजो न संदेहः || हरड़, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, कुटकी, अमलतासका गूदा और दाख । यह क्वाथ रुग्दाह सन्नि पातको नष्ट करता है इसमें सन्देह नहीं है । अनुवासन - बस्ति पिचकारी द्वारा गुदामार्गसे तरल पदार्थ अन्दर पहुंचानेका नाम "बस्ति" (पिचकारी - डूश, एनिमा) है । उसीका एक भेद "अनुवासन बस्ति" है । यह बस्ति घी तेल आदि स्नैहिक पदार्थोंसे दी जाती है इसलिए इसे स्नेहवस्ति भी कहते हैं । आयुर्वेद शास्त्र में सोना आदि धातुओं और बांस, नल, सींग तथा जानवरोंके अंडकोष आदिसे बस्ति बनाने की क्रिया लिखी है परन्तु आजकल अंग्रेजी दवा बेचनेवालों के यहां जो रबरकी नलीवाली बस्ति मिलती है उसीसे समस्त प्रकारका बस्तिकर्म सिद्ध हो सकता है । बलवान मनुष्योंको बस्ति देनेके लिये ३० तोला, मध्यम बलवालेको १५ तोला और निर्बल मनुको बस्ति देनेके लिये ७ तोला स्नेह लेना चाहिये । अनुवासन बस्तिका एक भेद मात्रावस्ति भी है इसमें ५ तोलेसे १० तोले स्नेह लिया जाता है । अनुवासन बस्ति रुक्ष और बात रोगोंके लिये हितकारक है परंतु रोगीकी जठराग्नि तीव्र हो तभी यह बस्ति देनी चाहिए । मन्दाग्निवाले, कुष्ठी, प्रमेही, उदररोगी और स्थूल शरीर वाले पुरुषको स्नेहबस्ति न देनी चाहिये। स्नेहवस्ति वसंत ऋतु सायंकाल और ग्रीष्म, वर्षा तथा शरद ऋतु में रात में देनी चाहिये । पहिले रोगीको विरेचन दें, फिर ६ दिन बाद पूर्ववत् शक्ति आनेपर स्नेह बस्ति देनी चाहिये । For Private And Personal Use Only जिस रोज स्नेहवस्ति देनी हो उस दिन रोगीके शरीर में तेल मर्दन करके पानी की भापसे पसीना देना चाहिये और चावलों की पतली पेया आदि शास्त्रोक्त भोजन कराके जरा देर टहलाना चाहिये, इसके बाद यदि आवश्यकता हो तो मलमूत्रादि त्याग कराके यथा विधि बस्ति देनी चाहिये । उस रोज रोगीको अधिक स्निग्ध भोजन देना हानिकारक है । बस्ति लेनेके समय रोगीको छींकना, जंभाई लेना या खांसना आदि कार्य न करने चाहियें ।
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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