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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८) भारत-भैषज्य-रत्नाकर ___ अकारादि क्वाथ । अलसीके फूल, मजीठ, बडके अंकुर, कुश [१] अजमोदादि क्वाथः [वृ०नि०र०] आदि पचं तृण । सब समान भाग लेकर यथा अजमोदा वचा हिंग लवणं बिडपूर्वकम। विधेि क्वाथ बनाकर पीवे और पथ्यमें मूंगका यूष शुंठी सुवर्चला कृष्णा दुल्लारी रिंगणी तथा॥ (और भात) खानेसे रक्तपित्तका नाश होता है। बीजपूरस्य बीजानि तुम्बुरु सम भागतः। | [४] अनुवासनोपगमहाकषाय दशक: एतत्वाथस्य पानेन यांति शूलान्यनेकधा ॥ [च० सं० सू० अ० ४] अजमोद, बच, हींग, विडनमक, सोंठ, हुल रास्नासुरदारुबिल्वमदनशतपुष्पावृश्चीरहुल, पीपल, दुल्लारी, कटेरी, बिजौ रेके बीज, तुम्बर | पुनर्नवाश्वदंष्ट्रानिमन्थस्योनाका इतिदशेमानि * सब समान भाग । इस क्वाथ के पीने से अनेक | अनुवासनोपगानि भवन्ति । प्रकारके शूल नष्ट होते हैं। ___रास्ना, देवदारु, बेल, मैनफल, सोया, श्वेत[२] अतिविषादि काथः [वृ०नि०० पुनर्नवा, लालपुनर्नवा, गोखरू, अरणी, सोनापाठा । अतिविषाघनवालकधातकी ये दश औषधियां अनुवासनके लिए उपयोगी हैं। कुटजदाडिमलोध्रमथोदकी। ( अनुवासन-देखो पृ० ९) विहतमेभिरिदं सलिलं पिबेद्, [५] अभयादि काथः [भै० र०] ग्रहणिकाविजितः प्रसभं नरः॥ सर्वज्वरहरंज्ञेयं ग्रहणीवेगनाशनम् । अभयामलकं दारु धन्याकं विश्वमेषजम् । अरोचमान्यदलनं धातुवर्द्धनकारकं ॥ | द्राक्षाच शारिवेत्येषां क्वाथः क्लोमगदापहः॥ अतीस, नागरमोथा, सुगन्धबाला, धायके हरड़, आमला, देवदारू, धनियां, सोंठ, फूल, कुड़ेकीछाल, अनारदाना, लोध, औरपाठा। | दाख, सारिवा । यह काथ क्लोम रोगोंमें लाभसब समान भाग लेकर यथा विधि क्वाथ बनाकर | दायक है। पीनेसे प्रबल ग्रहणी, ज्वर, अरुचि और मन्दाग्नि | [६] अभयादि क्वाथ: [शा. ध०म० आदिका नाश होता तथा धातुवृद्धि होती है। खं० अ०र०] [३] अतस्यादि काथः [कृ० नि० २०] अतसीकुसुमसमंगावटपरोहास्तृणांभसा पीता अभयामुस्तधन्याकरक्तचन्दनपकैः। साधयंति रक्तपित्तं यदि भुक्ते मुद्गषेण ॥ | "" वासकेन्द्रयवोशीरगुडूचीकृतमालकैः ॥ पाठानागरतिक्ताभिःपिप्पलींचूर्णयुक्तम्। * तुम्बुरु-नैपाली धनिया + तृण= ( कुशः काशः शरोदर्भ इक्षुश्चेति पिवेत्रिदोषज्वरजित् पिपासाकासदाहनुत । तृणोद्भवं ) कुशा, कांस, दाब, सरकड़ा प्रलापश्वासतन्द्राध्नं दीपनं पाचनं परम् । और ईख । या गन्धतृण । विण्मूत्रानिलविष्टम्भवमिशोषारुचिच्छिदम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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