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(१०)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
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__ स्नेहबस्ति लेनेके बाद रोगीको हाथ पैर सीधे फैलाकर लेटा रहना चाहिये । यदि स्नेहबस्तिका स्लेह मलयुक्त होकर २४ घंटे के अन्दर स्वयमेव बाहर न निकले तो रोगीको तीक्ष्ण निरूहण बस्ति, तीक्ष्ण फलवर्ति (शाफा), तीक्ष्ण जुलाब और तीक्ष्ण नस्य देने चाहिये।
बस्ति देनेके बाद यदि समस्त स्नेह बाहर आगया हो और रोगीकी जठराग्नि तीत्र हो तो उसे सायंकालमें पुराने चावल या साठी चावलका आहार देना चाहिये। [८] अभयादि क्वाथ: (४) नोट-कोई कोई वैद्य इसमें विरेचनके लिये (वृ० नि० र०)
शुद्ध गूगल भी डालते हैं। अभयामलकी कृष्णा चित्रकोऽयं गणो मतः। [११] अमृतादि क्वाथः (३) दीपनः पाचनो भेदी सर्वश्लेष्मज्वरापहः ॥ (वृ. यो. त, त. ७८; वृ. मा; हिक्का; यो.
हैड़, आमला, पीपल, चित्रक इनका क्वाथ र., वृ. नि. र. । कासा० ) दीपन, पाचक, भेदक और कफवर नाशक है। | अमृतानागरफजीव्याघ्रीपर्णीसुसाधितः क्वाथः।
[९] अमृतादि क्वाथः (१) | पीतः सकणाचूर्णः कासश्वासौ जयत्याशु॥ (वृ० नि० २०, यो. र., । सन्नि, चि) । गिलोय, सोंठ, भारंगी, कटेली और शालपर्णी । अमृतापटोलवासाव्योषयुतस्तंद्रिके काथः। । इनके क्वाथमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पिलाने से
गिलोय, पटोलपत्र, बांसा, सोंठ, मिर्च और कास और श्वास शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। पीपल इनका काथ तन्द्रिक सन्निपातको नष्ट करता है।
। [१२] अमृतादि क्वाथः (४) [१०] अमृतादि क्वाथः (२)
__ (वृ० नि० र०, यो. र. । सन्निपात.) (र० र०, भै० र., वृ. मा., च. द., वृ.
अमृतारुबुकविश्वासुरतरुरालाहरीतकीक्वाथः । यो. त; ब. से । विसर्प)
सकलसमीरणरोगान् मातः सद्यो हरेत् पीतः ॥
गिलोय, अरण्डकी जड़, सोंठ, देवदारू, अमृतवृषपटोलं मुस्तकं सप्तपर्ण ।
रास्ना और हरड़ । इनका क्वाथ, प्रातःकाल पीनेसे, खदिरमसितषेत्रं निम्बपत्रं हरिद्रे ॥
सब प्रकारके वायु रोगों को शीघ्र ही नष्ट कर विविधविषविसर्पान्कुष्ठविस्फोटकण्डू
देता है। रपनयति मसूरीं शीतपित्तज्वरश्च ।।
[१३] अमृतादि क्वाथः (५) (अत्रविरेचनार्थ गुग्गुलं केचित्क्षिपन्ति)
(भै० र०, वृ. मा. । मूत्रकच्छ्र ) गिलोय, बांसा, पटोलपत्र, नागरमोथा, सतौने
अमृता नागरं धात्री वाजिगन्धा त्रिकण्टकम् । की छाल, खैर सार, कालाबेत, नीमके पते, हल्दी |
प्रपिबेद्वातरोगातः सशुलो मूत्रकृच्छ्यान् ॥ और दारुहल्दी। इनका काथ विविध प्रकार के
१ पाठान्तर-व्याघ्रपर्णी (वृ नि. र.) विषदोष, विसर्प, कोढ़, विस्फोटक, खुजली, मसूरिका,
व्याघ्रीपर्णास (वृ. मा.) शीतपित्त और ज्वरका नाश करता है ।
पर्णासः काली तुलसी
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