________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ककारादि-घृत
(२५५)
र्चिका, शूकदोष, विसर्प, वातरक्त के विस्फोटक, । यह घृत सुखदायक, बल, वर्ण, पुष्टि और शिरके फोड़े, उपदंश, दुष्टघाव, नाडीव्रण (नासूर), | अग्निकारक है तथा ग्रहदोष, अलक्ष्मी (शोभा हीनता) सूजन, भगन्दर और मकड़ी के ज़हर का नाश कृमि, दन्तरोग और बालकोंके समस्त रोग विशेहोता है।
पतः दांत निकलने के समय की पीड़ा को नष्ट ___ यह धी शोधक, रोपण (धावको भरने वाला) करता है। और त्वचाके रंगको ठीक करनेवाला है। [८३५] कुमुदाद्यं धृता (वृ. नि. र.स्त्रिी.रो.) [८३३] कुटजाद्यं घृतम् (च.सं.चि. अ.१४) कुमुदं पनकोशीरं गोधूमा रक्तशालयः। कुटजफलवल्ककेशरनीलो
माषपर्णी यशस्था च शालिपर्णी सजीरकैः॥ त्पललोध्रधातकीकल्कैः। पलं पुषबीजानि प्रत्येकं कदलीफलम् । सिद्धं घृतं विधेयं शूले,
एकं तद्धीनभागो हि गव्यं क्षीरं चतुर्गुणम् ॥ रक्तार्शसां भिषजा॥ पानीयं द्विगुणं दत्वा घृतप्रस्थं विपाचयेत् । बुडेकी छाल, इन्द्रजौ, नागकेसर, नीलोफर, प्रदरं रक्तदोषं च पाण्डुरोगं हलीमकम्॥ लोध और धायके क-कसे यथा विधि घृत बनाकर बहरूपं च यत्पित्तं कामलां वातशोणितम् । सेवन करानेसे खूनी बवासीरकी पीडा नष्ट होती है। | अरोचकं ज्वरं जीप स्त्रीणां रोगं मदं भ्रमम् ।। [८३४] कुमारकल्याण घृतम् तरुणी चाल्पपुष्पा च या च गर्भ न विंदति। (भै. र; व. से; च. द.)
सा चाणि विंदते शेमं विंदते नात्रसंशयः॥ द्राक्षा सशकेरा शुण्ठी जीवन्ती जीरकं चला। कमल, पद्माक, खस, गेहूं, चावल, माषपर्णी, शठी दुरालभा बिल्वं दाडिमं सुरसास्थिरा। ऋद्धि (अथवा जीवन्ती), शालपर्णी, जीरा, खीरेके मुस्तं पुष्करमलश्च सूक्ष्मैला गजपिप्पली। बीज और केलेकी फली प्रत्येक ५-५ तोला, एषां कर्ष समै गेघृतप्रस्थं विपाचयेत् ।। गायका दूध ८ सेर, पानी ४ सेर, घृत २ सेर । कषाये कण्टकार्याश्च क्षीरे तस्मिश्चतुर्गुणे। ____ यथाविधि घृतपाक सिद्ध करें। इसके सेवनसे एतत् कुमारकल्याणं घृतरत्नं सुखप्रदम् ।। प्रदर, रक्तविकार, पाण्डु, हलीमक, अनेक प्रकारके बलवर्णकरं धन्यं पुष्ठयग्नेरतिवर्द्धनम् ।। पित्तविकार, काभला, वातरक्त, अरुचि, जीर्णज्वर, छायासर्वग्रहालक्ष्मीकृमिदन्तगदापहम् ॥
स्त्रीरोग (प्रदरादि), मद, भ्रम, मासिकका न आना सर्वबालामयं हन्ति दन्तोद्भेदं विशेषतः ॥
| और बन्ध्यत्व (बांझपने)का नाश होता है। ___दाख, खांड, सोंठ, जीवन्ती, जीरा, खरैटी, | [८३६] कुशायं घृतम् कपूरकचरी, धमासा, बेल, अनार, तुलसी, शाल- (भा. प्र.। अश्म. चि; सु. चि. अ. ६. अशों.) पर्णी, नागरमोथा, पोखरमूल, छोटी इलायची और कुशः काशः शरो गुन्द्र उत्कटो मोरटाश्मभित् गजपीपलके ११-१। तोला कल्क तथा कटेली के दर्भो विदारी वाराही शालिमूलं त्रिकण्टकः॥ क्वाथ और चार गुने दूधके साथ यथाविधि २ सेर । भलूकः पाटला पाठा पत्तूरोऽथ कुरुण्टकः । घृतका पाक सिद्ध करें।
१ बरी-सुक्षु.
For Private And Personal Use Only