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भारत-भैषज्य रत्नाकर
(२५४)
यह बंध्या (बांझ) स्त्रियों और दुर्बल, नपुंसक, अल्पवीर्य और वृद्ध पुरुषोंके लिये हितकारी, बलकारक, हृद्य, वृष्य, रसायन, ओज और तेजकारक, स्वर, आयु और प्राणवर्द्धक है। इसके सेवन से समस्त रोग नष्ट होकर सूखे हुए दुर्बलेन्द्रिय पुरुष भी मोटे ताज़े हो जाते हैं । [८२९] काशाद्यंधृतम् (च.सं. चि. अ. १५) तद्वत्काश विदारीक्षुकुशक्वाथ घृतं घृतम् ॥
कास, विदारीकन्द, ईख और कुश के काथ से सिद्ध घृत (अपस्मारका नाश करता है ।) [८३०] काश्मर्थ्यादि घृतम्
(च. सं. चि. अ. ३०) काश्मत्रिफला द्राक्षा कासमर्द परूपकैः । पुनर्नवाहरिद्राभ्यां काकनासासहाचरेः ॥ शतावर्यागुडूच्याच प्रस्थमक्षसमैर्धृतात् । साधितं योनिवातनं गर्भदं परमं पिबेत् ॥
खम्भारी, त्रिफला, मुनक्का, कसौंदी, फालसा, पुनर्नवा (बिसखपरा), हल्दी, दारुहल्दी, कव्वाडोढ़ी (काकनासा), पिया बांसा, शतावर और गिलोयके ११-१1 तोला कल्क के साथ २ सेर घृतका पाक सिद्ध करें।
इस घृत सेवनसे योनीगत वात नष्ट होती है और गर्भ धारण करने की शक्ति प्राप्त होती है। [८३१] कासमर्दादि घृतम्
(च. सं. चि. अ. २२; वा. भ. चि. अ. १३) कासमर्दाभयामुस्तपाठाकट्फलनागरैः । पिप्पल्याकटुरोहिण्याकाश्मयैः सुरसेन च ॥ अक्षमात्रै तपस्थं क्षीरद्राक्षारसाढके । पचेत् शोषज्वरप्लीहसर्वकासहरं शिवम् ।। कसौंदी, हैड़, नागरमोथा, कायफल, सोंठ, पीपल, कुटकी, खम्भारी और तुलसी प्रत्येक १/
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१ । तोला । इनके कल्क और ४ सेर दूध तथा ४ सेर दाखके रसके साथ २ सेर धी पकावें ।
यह घृत शोष, ज्वर, तिल्ली और सब प्रकार के कासरोग ( खांसी) का नाश करता है । [ ८३२] कासीसाद्यं घृतम्
(शा. ध. म. खं. अ. ९) काशीसं द्वे निशे मुस्तं हरितालं मनःशिलाम् । कपिलकं गंधकं च विडंगं गुग्गुलं तथा ॥ | सिक्थकं मरिचं कुष्ठं तुत्थकं गौरसर्षपान् ।
रसांजनं च सिंदूरं श्रीवासं रक्तचन्दनम् ॥ अरिमेदं निंबपत्रं करंजं सारिवां वचाम् । मंजिष्ठां मधुकं मांसीं शिरीषं लोधपद्मकम् ॥ हरीतकीं प्रपुनाटं चूर्णयेत्कार्षिकान् पृथक् । ततश्च चूर्णमालोड्य त्रिंशत्पलमिते घृते । स्थापयेत्ताम्रपात्रे च धर्मे सप्त दिनानि च । अस्याभ्यंगेन कुष्टानि दद्दूपामाविचर्चिकाः ॥ शूकदोषा विसर्पाश्चि विस्फोटा वातरक्तजाः । शिरःस्फोटोपदेशाच नाडीदुष्टत्रणानि च ॥ शोथो भगंदरश्चैव लूताः शाभ्यंति देहिनाम् । शोधनं रोपणं चैव सवर्णकरणं घृतम् ||
कसीस, हल्दी, दारूहल्दी, नागरमोथा, हरताल, मनसिल, कमीला, गन्धक, बायबिडंग, गूगल, मोम, काली मिर्च, कूठ, तूतिया, सफेद सरसों, रसौत (अथवा सुरमा), सिन्दूर, श्रीवास ( राल या तारपीन), लाल चन्दन, गन्ध खदिर (खैर), नीम के पत्ते, करंजवा, सारिवा, बच, मजीठ,, मुल्हैठी, जटामांसी, सिरस, लोध, पद्माक, हैड़ और पंवाड । प्रत्येकका ११ - ११ तोला चूर्ण लेकर उसे १ ||| सेर धीमें मिलाकर तांबे के बर्तन में भरकर ७ दिन तक धूपमें रक्खा रहने दें।
इसकी मालिशसे को, दाद, खुजली, विच
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