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ककारादि-धृत
(२५३)
(हकलाना), वीर्य की कमी और बंध्यत्व (बांझपने) स्त्रीणाञ्चैवाप्रजातानां दुर्बलानाशदेहिनाम् । का नाश करता है एवं आयु बल वर्द्रक, अलक्ष्मी, क्लीवानामल्पशुक्राणां जीर्णानामल्परेतसाम् ॥ पाप, राक्षस और ग्रह नाशक है। यह कल्याणक श्रेष्ठं बलकरं धन्य हृद्यं वृष्यं रसायनम् । धृत श्रेष्ट वीर्य उत्पादक है।
ओजस्तेजस्करं खर्यमायुष्यं प्राणवर्द्धनम् ॥ [८२७] कसेरुकादि सर्पिः (यो.र;व.से; हृ.रो.) | संघृहयति शुष्काश्च पुरुषान्दुर्बलेन्द्रियान् ! कसेरुकाशैवलशृङ्गाबेरप्रपौण्डरीकं मधुकं बिसं च। सर्वरोगविनिर्मुक्तस्तोयसिक्तो यथा द्रुमः !! ग्रन्थिश्च सर्पिःपयसा पचेत्तैः
कामदेव इति ख्यातं सर्पिरुक्तं महा गुणम् ॥ क्षौद्रान्वितं पित्तहृदामयनम् ॥ ___क्वाथ्यद्रव्य--आरागंध ६। र, गोखरु ३
कशेरु, शैवाल (सिरवाल), अदरक, प्रपौण्ड- | सेर आधपाव, शतावर, विदारीकंद, शालपर्णी, बला, रीक (पुंडरिया कमल) मुल्हैठी, कमलनाल और
गिलोय, पीपल की कॉपल, कमलगट्टा, पुनर्नवा पीपलामूल के कल्क से दूध के साथ घृतपाक
(विसखपरा) खम्भारी के फल और उड़द । प्रत्येक सिद्ध करें।
चीज़ ४०-४० तोला । इसमें शहद मिलाकर सेवन करने से पित्तज हृद्रोग नष्ट होता है।
सबको १२८ सेर पानी में पकाकर चौथा [८२८] कामदेव घृतम् (बं. से; र. पि.)
भाग शेष रहने पर छान लें। अश्वगन्धा पलशतं तद गोक्षुरस्य च ।
कल्क द्रव्य -मुनक्का, पनाक, कूठ, पीपल, शतावरी विदारी च शालपर्णी बलामृता ।।
लाल चन्दन, तेजपात, नागकेसर, कौंच के बीज, अश्वत्थस्य च शुङ्गानि पद्मबीजं पुननेवा ।
नीलोफर, दो प्रकारकी शारिवा, जीवनीय * गण
प्रत्येक १२-१। तोला। काश्मर्याश्च फलश्चव माषबीजं तथैव च ॥
__ खांड १० तोला, पौण्डे का रस ८ सेर, पृथग्दशपलान्भागांश्चतुद्रोणेऽम्भसः पचेत् । द्रोणशेषे रसे तस्मिन् पूते शीते प्रदापयेत् ॥
ईखका रस ८ सेर, दूध ८ सेर । उपरोक्त सब
चीज़ोंसे यथाविधि २ सेर घृत सिद्ध करें। मृद्वीका पद्मकं कुष्ठं पिप्पली रक्तचन्दनम् ।
____ यह घृत रक्तपित्त, क्षत, क्षीणता, कामला, पत्रकं नागपुष्पश्च आत्मगुप्ताफलं तथा ॥ नीलोत्पलं शारिवे द्वे जीवनीयानशेषतः।
वातरक्त, हलीमक, पाण्डु, विवर्णता, स्वर क्षय पृथकर्षसमा भागाः शर्करायाः पलद्वयम् ॥
(गला बैठ जाना), मूत्रकृच्छ, हृदयकी दाह और रसः स्यात्पौण्ड्रकेक्षणामाढकाढकमाहरेत् ।
पसली शूलको नष्ट करता है। चतुर्गुणेन पयसा घृतप्रस्थं विपाचयेत् ॥
यह बहु स्त्रीगामी राजाओं को सेवन करना
चाहिये । रक्तपितं क्षतक्षीणं कामलां वातशोणितम् । हलीमकं पाण्डुरोगं वर्णभंगं स्वरक्षयम् ॥
__* जीवनीयगणः--मेदा, महामेदा, जोधक,
| ऋषभक, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धि,वृद्धि, मूत्रकृच्छ्रमुरोदाहं पार्श्वशूलश्च नाशयेत् ।
मुल्हैठी, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, जीवन्ती। च. एतद्राज्ञां प्रदातव्यं वहन्तापुरचारिणाम् ॥ । स.अ. ४।
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