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(२५२)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर।
जटामांसी, केलेकी जड, इलायची, लौंग, त्रिफला, दाह, पाक और स्त्रावयुक्त उपदंशका नाश कैथका फल, जलमें उत्पन्न होनेवाले कन्द (यथा- करता है। सिंघाडा, कमलकन्द, कसेरू आदि) और न्यग्रोधादि [८२६] कल्याणक घृतम् (च.चि. अ.१४) गण । *
विशालात्रिफलाकौन्तीदेवदार्वेलवालुकम् । ___ यह घृत सोमरोग, सब प्रकारके मूत्ररोग, | स्थिरानन्तारजन्यौ द्वे शारिवे द्वे प्रियंगुकम् ।। शुक्रविकार, २० प्रकारके प्रभेह, १३ प्रकारके नीलोत्पलैलामञ्जिष्ठादन्तिदाडिमकेसरम् । मूत्राघात और विशेष कर बहुमूत्र, मूत्रकृच्छू और | तालीसपत्रं वृहतीमालत्याःकुसुमं नवम् ॥ पथरीको नष्ट करता है।
विडंगं पृश्निपर्णी च कुष्ठं चन्दनपत्रकम् । . इस कदल्यादि घृतका निर्माण विष्णुजीने कहा | कल्कैःकर्षसमैरेतैविंशत्याष्टाभिरेव च ॥ है यह टक्त रोगोंको, जैसे विष्णुका चक्र असुरोंको
चतुर्गुणे जले पक्त्वा घृतप्रस्थं प्रयोजयेत् । नष्ट करता है वैसे ही नाशकारक है।
अपस्मारे ज्वरे कासे श्वासे मन्देऽनलक्षये ॥ [८२५] करंजाच घृतम्
वातरोगे प्रतिश्याये तृतीयकचतुर्थके। ___(व.नि. रभा. प्र. म. खं. । उपदं.) छद्य र्शोमूत्रकृच्छ्रे च विसर्पोपहतेषु च ॥ फरञ्जबीमार्जुनशालजंबूवटा
कण्डूपाण्ड्वामयोन्मादविषमेहगरेषु च । दिभिःकल्ककषायसिद्धम् ।
भृतोपहतचित्तानां गद्गदानामरेतसाम् ।। सपिनिहन्यादुपदंशदोषं
शस्तं स्त्रीणाश्च वंध्यानां धन्यमायुबलप्रदम् । . सदाहपाकं श्रुतिरागयुक्तम् ।। अलक्ष्मींपापरक्षोप्नं सर्वग्रहविनाशनम् ।। करंजवेकी गिरी, अर्जुनकीछाल, साल, जामन
कल्याणकमिदं सर्पिः श्रेष्ठं पुंसवनेषु च ।। और पंचक्षीरी वृक्षों (बड, पीपल, पिलखन, गूलर इन्द्रायन, त्रिफला, रणुका, देवदारु, एलवा, और महुआ) के कषाय तथा कल्कसे सिद्ध घृत, शालपर्णी, अनन्तमूल, हल्दी, दारुहल्दी, दोप्रकार * न्यग्रोधादि गणः ( सु० सं० सू० अ० ३८)
की शारिवा, फूलप्रियंगु, नीलोफर, इलायची,मजीठ, न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्लक्षमधुककपीतन ।
दन्ती, अनार, नागकेसर, तालीसपत्र, बड़ी कटेली, ककुभाम्रकोशानचोरकपत्रजम्बुद्वयपियाल चमेलीके ताजे फूल, बायबिडंग, पृश्नपी(पिठवन) मधुकरोहिणीवजुलकदम्बबदरीतिन्दुको- कूठ, चन्दन, कमल । प्रत्येकका कल्क ११-१॥ सल्लकोरोध्रसावररोधभल्लासकपलाशानन्दीवृक्षश्चेति ।
| तोला और चार गुने पानीके साथ २ सेर धीका वड़, गूलर, पीपल, पिलखन, महुआ, पाक सिद्ध करें। अम्बाडा, आम, अर्जुन, कोशाम्र, चोरकपत्र | यह घी अपस्मार, ज्वर, खांसी, श्वास,मंदाग्नि, (लाक्षावृक्ष) बडीजामन, छोटीजामन (जमौवा)
| क्षय, वातव्याधि, जुकाम, तिजारी बुखार, चौथिया, पियाल (चिरोजी वृक्ष) कटुकी, बेत, कदम्ब, बेरी, तेंदु, सलकी, लोध, पठानीलोध,भिलावा,
वमन, बवासीर, मूत्रकृच्छ्र, विसर्प, खुजली, पाण्डु, डाक और नन्दोवृक्ष।
उन्माद, विष, प्रमेह, भूतबाधा, गद्गद् स्वर
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