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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ककारादि-चूर्ण (२१९) - छानकर रख छोड़े। इसकी मात्रा १ तोले की है,[2] | कृष्णाग्निविश्वधनजीरककण्टकारीशौच क्रिया के बाद गरम जल के साथ सेवन | पाठानिशाकरिकणामगधाजटानाम् । करने से ४-५ दिन में ही उदर के सर्व कीड़े। चूर्णकवोष्णसलिलरवलोड्यपीतं नष्ट हो जाते हैं। नातः परं वयथुरोगहरं नराणाम् ॥ [७२२] कृष्णादिचर्वणम् पीपल, चीता, सोंठ, नागरमोथा, जीरा, (वृ. नि. र. । मुख; भा. प्र. म. खं. २; यो. र.) कटेली, पाठा, हल्दी, गजपीपल और पीपलामूल । कृष्णजीरककुष्ठेन्द्रयवचर्वणतस्वयहात् । इनके चर्णको कुछ गर्म पानीमें मिलाकर पीनेसे मुखपाकव्रणक्लेदं दौगंध्यमुपशाम्यति ॥ शोथका अत्यन्त शीघ्र नाश होता है । ___पीपल, जीरा, कूठ और इन्द्रयवको ३ दिन | [७२६] कृष्णादिचूर्णम् (४) तक चबानेसे मुखपाक, ब्रण, क्लेद [रतूबत] और (वृ. नि. र; वं. से. बा. रों.) मुखकी दुर्गधि नष्ट होती है। कृष्णा दुरालभा द्राक्षा कर्कटाख्या गजाहया। [७२३] कृष्णाचूर्णम् (१) चूर्णिता मधुसर्पियो लीढा हंति शिशोर्गदान् । (वृ. नि..र. हिक्का. सु. सं. उ. तं. अ. ५०) ! कासं श्वासं च तमकं ज्वरं वापि विनक्ष्यति ॥ कृष्णामलकशुंठीनां चूर्ण मधुसितायुतम् ॥ पीपल, धमासा, दाख, काकडा सींगी और मुहुर्मुहुः प्रयोक्तव्यं हिकाश्चासनिवारणम् ॥ | गजपीपल इनके चूर्णको शहद और घी में मिला पीपल, आमला और सोंठके चूर्णको शहद कर चाटनेसे बालकोंके तमक श्वास, खांसी और और मिश्री में मिलाकर बार बार चाटनेसे हिचकी | ज्वरका नाश होता है। और श्वासका नाश होता है। | [७२७] कृष्णादिचूर्णम् (५) [७२४] कृष्णादिचूर्णम् (२) (वृ. नि. र. बा. रो.) (शा. ध. म. खं. अ. ६) कृष्णा महौषधं विल्वं नागरा सयवानिकः । कृष्णारुणामुस्तकङ्गिकाणां मधुसर्पियुतं लीढं बालानां ग्रहणी हरेत् ॥ तुल्येण चर्णेन समाक्षिकेण । पीपल, सोंठ, बेलगिरी, नागरमोथा और अजज्वरातिमारः प्रशमं प्रयाति वायन । इनके चूर्णको शहद और घी में मिलाकर सश्वासकासः सवमिः शिशूनाम् ॥ | चटानेसे बालकोंकी संग्रहणीको आराम होता है। पीपल, अतीस, नागरमोथा और काकडासींगी | [७२८] केतकीक्षारयोगः (यो. र. गुल्मे.) समान भाग लेकर चूर्ण करें। इसे शहदके साथ | स्वर्जिकाकुष्ठसहितः क्षारः केतकीसंभवः । चटानेसे बच्चोंके ज्वरातिसार, श्वास, खांसी और | पीतस्तैलेन शमयेद्वातगुल्मं सुदारुणम् ॥ मन का नाश होता है। सजीखार, कूट और केतकीका खार । इनके [७२५] कृष्णादिचूर्णम् (३) | चूर्णको (एरण्ड) तेलके साथ पीनेसे भयानक वात (वृ. नि. र. शोथे.) गुल्म (वायगोले)का नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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