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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२०) भारत-भैषज्य-रत्नाकर [७२९] केशरञ्जकः (भै. र. । क्षुद्र.) [७३२] कोलास्थियोगः (वृ.नि. र.। अजी.) त्रिफलानीलिनीपत्रं लौहभृङ्गरजः समम्। | कोलास्थिमज्जकल्कस्तु पीतो वाप्युदकेन वै। अविमूत्रेण संयुक्तं कृष्णीकरणमुत्तमम् ॥ । अचिराद्विनिहन्त्येनं प्रयोगो भस्मकं नृणाम् ।। ___ त्रिफला, नीलके पत्ते, लोहेका बुरादा और , वेरकी गुठलीकी मांगी (गिरी) को पानीमें भांगरा । सब समान भाग लेकर चर्ग करें। इसे | पीसकर पीनेसे भस्मक रोगका अत्यन्त शीव्र नाश भेड़के मूत्रमें मिलाकर लेप करनेसे बाल काले हो | हाता है । जाते हैं । यह उत्तम खिजाब है।' | [७३३] कंचटादिचूर्णम् (च. पा. । अति.) [७३०] केशरयोगः (वृ. नि. र. । अश्म.) | कंचटजम्बुशृङ्गाटकपत्रविल्वबर्हिष्टम् । जलधरनागरसहितं गङ्गामपुराणाज्येन संपिष्टं पीतं सम्यग्दिनत्रयम् । पिवेगवाहिनीं रुन्ध्यात् ।। कुंकुमं नाशयत्याशु देहिनां मेदशर्कराः॥ गजपीपल, जामनकी गुठली, सिंघाड़ेके पत्ते, केशरको पुराने धीमें पीसकर ३ दिन तक | बेलगिरी, सुगन्धबाला, नागरमोथा और सोंठ । पीनेसे मेदशर्करा (पेशाबकी रेग) नष्ट हो जाती है। इनका चर्ण प्रबल, वेगवान अतिसारको भी नष्ट [७३१] कोकम्बादिचूर्णम् (वृ.नि. र । संग्र.) कर देता है। समूलपत्रकोकम्बं पलद्वयमित शुभम् । [७३४] कंटकार्यादिचूर्णम् (१) मल्लातफलमज्जाया मरिचस्य पलं पलम् ॥ (च. पा.। बा. रो.) एतचूर्णीकृतं सूक्ष्म भक्षयेत्कर्षसमितम् । पीतं पीतं वमेद्यस्तु स्तन्यं तं मधुसर्पिषा । अशांकुराग्निईत्याशु सबाह्याभ्यंतरानपि ॥ द्विवार्ताकी फलरसं पञ्चकोलं च लेहयेत् ॥ ___ मूल और पत्र सहित कोकंब १० तोला, । यदि बच्चा बार बार दूध पीकर उल्टी कर भिलावेकी गिरी और काली मिर्च ५-५ तोला । देता हो तो उसे कटेली के फल के रस में पंचकोल सबको महीन चूर्ण करके १। तोला प्रमाण मात्रा । (पीपल, पीपलामूल, चव, चित्ता और सोंठ)का चूर्ण नुसार सेवन करनेसे बवासीरके बाहरी और अन्द | एवं धी और शहद मिला कर चटाना चाहिये । रुनी मस्से नष्ट होते है। [७३५] कंटकार्यादिचूर्णम् (२) (वृ. नि. र. । कास.) १ लेप करने के बाद केले या अरण्डका कार्याः कणायाश्च चूर्ण समधु कासहत् ।। पत्ता बांध देना चाहिये और उसे.१२ घंटे बाद | खोल कर बालोंको तेल लगा कर धो डालमा | कटेली और पीपल के चर्ण को शहद के साथ चाहिये। | चाटने से खांसी का नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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