SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१६) भारत-भैषज्य रत्नाकर - के बीज, मूर्वा और पित्त पापड़ा। सब समान । [७११] कुष्ठनाशकाः प्रयोगा: भाग लेकर चूर्ण करें। (र. चि. म. ३स्तब्कः) ___ इसे शहद में मिलाकर चाटने या मद्य अथवा ; कुंकुमेंदीवरं मुस्ता चातुर्जातं फलत्रिकम् । पानी के साथ सेवन करने से हृद्रोग, पांड, ग्रहणी, | समं चूर्ण विरिच्याऽथ सर्वकुष्ठानि नाशयेत् ।। गुल्म, अरुचि, ज्वर, कामला, सन्निपात और मुख- एकस्मात्सप्तकावं गलत्कृष्ठं विशोषयेत् । रोगों का नाश होता है। क्रिमिनलं घोररूपं दुनिरीक्ष्यं च यद्भवेत् ।। ७०८] किरातादिचूर्णम् (भा. प्र. ज्वरे) । व्रणेषु देयमेतद्धि चूर्ण संपिष्य वारिणा। किराततिक्तात्रिवृदम्बुपिप्पली वेगतः सिद्धिमायाति दुःसाध्यमपि सत्वरम् ॥ विडंमविश्वाकटुरोहिणीरजः। कुष्ठवणेषु वै देयं तच्चूर्ण जलपेशितम् । निहन्ति लीढं मधुनाऽतिसत्वरम् शीघ्रमारोहमायाति म्रियते क्रिमयस्तथा । सुदुस्तरं दुजेलदोषजं ज्वरम्॥ न शक्यते प्रभावोऽस्य कल्पकोटिगतेन च । चिरायता, निसोत, सुगन्धबाला, पीपल, बाय- वक्तं ब्रह्मादिदेवैश्च प्रयत्नादपि निश्चितम् ।। बिडंग, सोंठ और कुटकी, इनके चूर्णको शहदमें ___ केसर, कमल, नागरमोथा, चातुर्जातक [दालमिलाकर चाटनेसे दूषित जलसे उत्पन्न हुवा दुस्साध्य स्वर अत्यन्त शीघ्र नष्ट होता है। चीनी, तेजपात, इलायची, नागकेसर] और त्रिफला । | सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। इसे [७०९] कुटजचूर्णम् (वृ. नि. र. अति; वै. जी. वि. २) पानी के साथ सेवन करने से सब प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते हैं। एक सप्ताह पश्चात् गलित क्रिमिइंद्रजमेघमदाकुसुमं श्रीलोध्रमहौषधमोचरसानाम् । युक्त दुस्साध्य और घृणित कुष्ठ भी सूखने लगता है। कुष्ठ और घावोंके लिये यह चूर्ण अत्यन्त चूर्णमिदं गुडतक्रनिपीतं | उपयोगी है। इससे घाव अत्यन्त शीघ्र भरते और हंत्यचिरादतिसारमुदारम् ।। क्रिमि नष्ट होते हैं। इन्द्रजौ, नागरमोथा, धायके फूल, बेल, लोध्र, सोंठ और मोचरस । इनके चूर्ण को गुड़में मिलाकर [७१२] कुष्ठादिचूर्णम् (१) (भा.प्र.उदर.) तक्रके साथ पीनेसे अत्यन्त प्रबल अतिसार नष्ट | कुष्ठं दन्ती यवक्षारो व्योपं त्रिलवणं वचा। होता है। अजाजी दीप्यकं हिंगुस्वर्जिका चव्यचित्रकम् । [७१०] कुटजादिचूर्णम् (वृ. नि. र.अति.) शुण्ठी चोष्णाम्भसा पीता वातोदररुजापहा ।। छुटजातिविषाचूर्ण मधुना सहलेहितम् । कूठ, दन्ती, जवाखार, त्रिकुटा, सेंधानमक, चिरोत्थितमतिसारं पक्कं पित्तास्त्रजं जयेत॥ कालानमक, विड् लवण, वच, जीरा, अजवायन, कुड़ेकी छाल और अतीसके चूर्णको शहदके | हींग, सज्जीखार, चव्य, चीता और सोंठ । इनके साथ चाटनेसे पुराना पक्वातिसार और रक्तपित्त | चूर्ण को गरम पानीके साथ सेवन करनेसे वातज ना होता है। उदर रोग नष्ट होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy