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अंकारादि-लेप
अथ अंकारादि लेप प्रकरणम् [५९४] अंगरागलेपः (सु.सं. चि.अ.२५)। हैड़का चूर्ण, नीम के पत्ते, आम की छाल, हरीतकीपूर्णमरिष्टपत्रं
अनार के फूलों के डंठल और मल्लिका के पत्ते । चूतत्वचं दादिमपुष्पवृन्तम् । ____ यह अत्युत्तम राजाओ के योग्य अंगराग पत्रश्च दद्यान्मदयन्तिकाया लेपारागो नरदेवयोग्यः॥
अथ अंकारादि अञ्जन प्रकरणम् [५९५] अंजनवटीः (र. रा. सुं. ब्व.) । नाश होता है। पारदं टहमेकन्तु विटकं गन्धकं तथा । [५९६] अंजनभैरवः (रसे. चि. म.अ. ९) मरिचं नवटई स्याद सर्व वै कालीकृतं ॥ सूततीक्ष्णकणागन्धमेकांशं जयपालकम्। कारवेल्लिरसमधमेकविंशतिसंख्यकम्। सबैत्रिगुणित जम्भवारिपिष्टं दिनाष्टकम् ॥ ग्रामात्र वटी कुत्तिया इंजनमाचरेत् ॥ नेत्राञ्जनेन हन्त्याशु सर्वो पद्रवमुल्वणम् ॥ सर्वान् ज्वरान् निहन्त्याशु सत्यं शङ्करभाषिता पारा, तीक्ष्ण लोहभस्म, पीपल और गंधक
___ पारद ४ माषा, गंधक ८ माषा और काली | प्रत्येक १-१ भाग । जमाल गोटा सब से तिगुना । मिर्च १ तोला, सब की कजली करके करेलेके | सब का महीन चूर्ण करके आठ दिन तक जंबीरी रस की २१ भावना देकर १-१ रत्ती की गोलियां | नीबू के रस में घोटें।
इसका अंजन करने से सब उपद्रवों से युक्त इसका अंजन करनेसे सब प्रकारके ज्वरोंका । (सन्निपात) का भी अत्यन्त शीघ्र नाश हो जाता है।
बनावें।
अथ ककारादि कषाय प्रकरणम् [५९७] कटुकाविक्वाथः (च. पा. मुख.)। [५९८] कटुक्यादिक्वाथः (१) कटुकाति विषापाठादारु मुस्तकलिंगकाः।
(वृ. नि. र. ज्वरे) गोमूत्र कथिताःपीताः कंठरोग विनाशनाः ॥ कटुकी चित्रकं निम्ब हरिद्रातिविषं वचा ।
कुटकी, अतीस, देवदारु, पाटा, नागरमोथा | सप्तपर्ण्यमृतानिम्बस्नुह्यकै साधितं जलं ॥ और इन्द्रयव । इनको गोमूत्र में पका कर पीने से पेयं माक्षिकसंयुक्तं बलासज्वरशांतये॥ कण्ठ रोगों का नाश होता है।
कुटकी, चीता, नीम की छाल, हल्दी, अतीस,
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