________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१९८)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
अथ औकारादि कषायप्रकरणम् [५९०] औदुम्बरादियोगः
गूलरका क्वाथ मिश्री मिलाकर पीनेसे दाह __ (वृ. नि. र. ज्व.)
शान्त होती है। एवं गिलोय का सत मिश्री औदुम्बरस्य निर्यासः सितया दाह नाशनः । छिन्नासारः सितायुक्तः पित्तज्वरनिषूदनः ॥ ।
मिलाकर सेवन करने से पित्तज्वर नष्ट होता है।
अथ अंकारादि कषायप्रकरणम् [५९१] अंगमर्दप्रशमनमहाकषायः । [१९२] अंजनादि गणः (च. सं. सू. ४ अ.)
(सु. सं. सू. ३८ अ.) विदारीगन्धापृश्निपर्णीवहतीकण्टकारिकैरण्ड- अंजनरसांजननागपुष्पप्रियंगुनीलोत्पलनलदकाकोलीचन्दनोशीरैलामधुकानीति नलिनकेशराणि मधुकं चेति । दशेमान्यङ्गमर्दप्रशमनानि भवन्ति ॥ अञ्जनादिर्गणो शेष रक्तपित्तनिबर्हणः । ___विदारीकन्द, पृश्निपणी, बड़ी कटेली, छोटी | विषोपशमनो दाहं निहन्त्याभ्यन्तरं भृशम् ॥ कटेली, अरण्ड, काकोली, चन्दन, खस, इलायची | सुरमा, रसौत, नागकेसर, फूलप्रियंगु, नीलो
और मुल्हैठी। इन दश चीजों का कषाय अङ्गमर्द | फर, खस, केसर और मुल्हैठी। यह अंजनादि गण (बदन टूटना) का नाश करता है। रक्तपित्त, विष और आभ्यन्तरिक दाह नाशक है।
___अथ अंकारादि तैल प्रकरणम् ५९३] अंगारक तेलम् (च. द. ज्वरे) । मूर्वा, लाख, हल्दी, दारुहल्दी, मजीठ, इन्द्रामर्वा लाक्षा हरिद्रे द्वे मंजिष्ठा सेंद्रवारुणी। यन, बड़ी कटेली, सेंधा लवण, कूट, रास्ना, जटाबृहती सैंधवं कुठं रास्ना मांसी शतावरी ॥ मांसी और शतावर। इनके कल्क और ८ सेर आरनालाढकेनैव तैल प्रस्थं विपाचयेत । | आरनाल के साथ २ सेर तेल सिद्ध करें। यह तैलमंगारकं नाम सर्वज्वरविमोक्षणम् ॥ तेल सब तरह के ज्वरों का नाश करता है।
For Private And Personal Use Only