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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८२) भारत-पथ्य-रत्नाकर %3 करे आधा सेर जल रह जाय तब कपड़े में छानकर, [५३६] उपदंशेभसिंहो रसः इस काथ में अमरबेल के एक शेर रस को मिला (वृ. यो. त. ११७ त.) कर आध सेर सरसों का तेल डाल कर पकावे ।। लवङ्गं पारदं शुद्धं मरिचं करहाटकम् । परन्तु यह स्मरण रहे कि प्रथम तेल को पूडी जन्तुघ्नं मस्तकी चैत्र प्रत्येकं कर्षसंमितम् ।। उतारने लायक पका कर काथ में डाले, नहीं तो चतुष्कर्षा जवानीच गुडं तद्वद्विनिक्षिपेत् । तेल उफन जायगा । जब सम्पूर्ण क्वाथ और रस भल्लातकानां च शुभां विंशति द्विगुणां बुधः। जलजाय और तेल में बबूला (बुद्बुद) उठने बन्द | चूर्णयित्वा तु तत्सर्व गुटिका कारयेद्भिषक् । हो जाय और कुछ क्वाथ की तराई रहे, तब तेलकर्षमात्रां ततः खादेदेकां प्रातर्हि मानवः ।। को पका समझ कर चूल्हे से कढ़ाई को उतार कर ताम्बूलं भक्षयेत्पश्चात्पथ्यं दुग्धोदन हितम् । ठंडी कर दे और तेल को कपड़े में छानकर शीशी | सप्ताहान्मुच्यते जन्तुः फिरंगाख्योपदंशतः॥ में रख छोड़े। इस तेल की मात्रा तीन मासे से छः संधिशोकास्थिशोफास्थिशूलसंधिरुजोऽपि । मासे तक रोगीको सीधा लिटा कर नाक में डाले | उपदंशेमसिंहाख्यो रसोऽसौ शंभुनेरितः॥ तो इस तेल की नस्य भी उन्माद और मिरगी के लौंग, शुद्ध पारद, काली मिर्च, आकरकरा, लिये बहुन उत्तम चीज़ है। बायबिडंग और रूमीमस्तगी। प्रत्येक १०-११ [५३५] उपदंशकुठारः (वृ. नि. र. उपदं.) | तोला । अजवायन और गुड़ ५-५ तोला । उत्तम कंजुष्टं अष्टकं चैव तोलैकं तु पृथक्पृथक् ।। | भिलावे ४० नग। तोलाई तुत्यकं ग्रामं शृङ्गवेररसेनतु ॥ सबका चूर्ण करके विधिवत् ११-१। तोला पर्दयिस्वा वटीकार्या बदरास्थिमिता भिषक् । की गोलियां बनावें। शृङ्गवेररसेनैव सायं प्रातच भक्षयेत् ॥ । इन में से प्रति दिन प्रातःकाल १ गोली खाने मधुराम्लं मत्स्यदुग्धं कूष्मांडं च विवर्जयेत् । के पश्चात् पान खाना चाहिये । इस प्रकार ७ दिन, उपदंशकुठारोयं रसःसर्वत्र पूजितः ॥ तक सेवन करने से फिरंग (आतशक ) का नाश मुखा सिंग १ तोला, कूठ १ तोला, नीला होता है। यह रस अस्थि और सन्धिगत सूजन थोथा ६ माशे । अदरक के रस में खरल कर के तथा पीड़ा का नाश करता है। बेरकी गुठली के बराबर * गोलियां बनावें। पथ्य---दूध, चावल *। __ इन्हें अदरक के रस के साथ सुबह शाम [५३७] उमाप्रसादनो रसः खाने से उपदंश का नाश होता है। परहेज ---मधुर और अम्ल रस, तथा मछली और (र. र. स. १२ अ.) दूध एवं पेठा न खाना चाहिये। मे६.गन्धाश्मविषव्योषपटूनि च । * इसकी मात्रा अधिक प्रतीत होती है | जीरकद्वयमेतानि समभागानि कारयेत ॥ ret: मुरवाल और नीलाथोथा विवेले * वृहयोग तरगियोक्त "उपदेशेभकेसरी सका भी यही प्रयोग हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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