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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उकारादि-रस (१८१) देवदारु, चिरायता, कुटकी, कटेली, मुल्हैठी, इन्द्र जौ, । लिखता हूं जिस के साथ सेवन करने से तत्काल चिता, खरैटी, पीपला मूल, खस, सौंजने के बीज, फल मिले । आकाश बेल को हांडी में भरकर हांड़ी निसोत, इन्द्रायण, बंग भस्म , चांदी भस्म, अभ्रक | के ऊपर शराव रखकर मुद्रा कर दे । बाद प्रथम भस्म और मूंगा भस्म । सब चीजें समान भाग। | मन्दी मन्दी आंच देकर तेज अग्नि करता रहे । लोह भस्म सब के बराबर। सबका चूर्ण करके इस प्रकार दो प्रहर आंच लगाने से आकाश बेल पानी में घोटें। की भस्म हो जायगी । काशी प्रान्त में "बावर" इसे सेवन करने से उन्माद, भूतोन्माद, अप- ब्रज मण्डल की तरफ़ अमर बेल कहते हैं। यह स्मार, कृशता और दारुण रक्तपित्त का नाश | पीले वर्ण की सुत सी सुतसी वृक्षों पर चढ़ी रहती होता है। | है। इसमें फल फूल कुछ नहीं लगता । इसकी (५३४] उन्मादहरा योगाः (रसा. सा.) जड़ भी नहीं होती है, इसीलिए इसको निर्मूली भी नेपालं शोधितं शुल्वं शिलागन्धकमारितम् ।। कहते हैं इसी के विषय में यह भी कहावत है किद्विगुणं वर्णसिन्दाव ताम्रतुल्या मनःशिला॥ | "अमर बेल के जड़ नही कौन करे प्रतिपाल, कृष्णाधत्तरवीजानामद्धे द्वेधा विषं वचा। तुलसी रघुवर छोड़ के और बताऊं काय ?" मर्दिता भाविताः क्वाथे वचाजे वटिकीकृताः॥ ____ यह सभी देशों में प्रायः सुलभ है । इस की द्वित्रिगुञ्जोन्मिता देया उच्यतेऽत्रानुपानकम् ॥ | भस्म में से एक तोला ले। और दो तोले बच, तीन येनाऽनुपानयोगेन न च्यवन्ते खकात्फलात् । तोले बारह वर्ष का गुड़, (बारह वर्ष का पुराना अन्तधूमहताऽऽकाश-वल्लीकर्षण मिश्रितः। गुड न मीले तो तीन वर्ष से अगाड़ी का जहां तक उग्राद्वादशवर्षस्थ-गुडजातः कषायकः॥ मिले उसीसे काम चलावे ) इन दोनों चीज़ों का चत्वारिंशतमन्दाश्च स्थापितेन घृतेन युक्। काथ करके एक तोला भस्म भी काथ में मिला नस्याऽर्हणाऽपि पीतोवोन्मादाऽपस्मृतिनाशकः दे । और इसी काथ में चालीस वर्षका पुराना धी नागकेसरधत्तूर-वचाद्योवल्लिसाधितः। भी अन्दाज़ छः माशे के डाल दे ( यदि चालीस सापेस्नेह उन्मादेऽपस्मृतौ नस्यतो हितः॥ वर्ष का घी न मिले तो कम से कम दस वर्ष का शुद्ध मनशिल और गन्धक के योग से बनाई | हो । (पुराने दुकानदारों के यहां १०० वर्ष तक हुई शोधित नेपाली तांबे की भस्म एक तोला, | का घी संग्रहीत रहता है ) केवल इस घी की नस्य स्वर्ण सिन्दूर छः मासे, शुद्ध मैनशिल एक तोला, 1 (सूंघनी ) देने से भी उन्माद और मिरगी नष्ट काले धतूरे के बीज सवा तोला, ( काले धतूरे के | होजाती है। इस काथ के साथ उन्मादरोगहर की बीज नहीं हों तो किसी भी धतूरे के बीज ले सकते / मात्रा के सेवन करने से उन्माद और मिरगी दोनो हैं) सवा तोला शुद्ध वछनाभ विष, सबा तोला | रोग अवश्य नष्ट हो जाते हैं और एक ब्टांक बच । इन सब के चूर्ण को बछ के काथ में भावना नागकेसर, एक छटांक काले धतूरे के बीज, एक देकर दो रत्ती प्रमाण गोलियां बना ले। इसका | छटांक बच, इन तीनों को दो सेर गरम पानी में नाम उन्मादहर रस है। अब इस रस का अनुपान । डाल कर रात भर भिगो दे, प्रातःकाल इसका काथ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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