________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१७६)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
पथ्य-साठी चावल, नवनीत, तक और भात। [५१९] उदयमार्तण्डरसः [५१८] उदयभास्करः (८)
(र. र. स., ११ अ.) (र. र. स. १८ अ) पलोन्मितस्य शुल्वस्य सूक्ष्मपत्राणि कारयेत् । तोलतुल्यं रसं शुद्धं गन्धकं तचतुर्गुणम् ।।
| तत्समं गन्धकं दत्वा खल्वं सर्व विनिक्षिपेत् ॥ विधाय कज्जली लक्ष्णां ततो निम्बुकवारिणा
जम्बीररससंयुक्तं दिनं धर्मे निधापयेत् । तस्य कल्कं प्रकुर्वीत खल्वे यामचतुष्टयम् ।।
ततः शुल्वे द्रवीभूते रसकर्ष नियोजयेत् ॥ द्वितोलकच ताम्रस्य तनुपत्राणि सर्वशः ॥
तत्सिद्धमुदरे योज्यं शोफे चैव भगन्दरे । कल्केन तेन निंबूकरसेनाप्लाव्य खल्बके ।
| नाम्ना तूदरमार्तण्डरस एष प्रकीर्तितः ॥ स्थापयेदातपे तीव्र पिण्डीकृत्य ततः परम् ॥
____तांबेके सूक्ष्म ( कंटक बेधी ) पत्र ५ तोला मूषामध्ये निरुध्याथ कुक्कुटाख्यतिभिःपुटैः।
और शुद्ध गन्धक ५ तोले लेकर खरलमें डालें और पचेच्चुल्यां विनिक्षिप्य चुल्लीपरिमितोपलै।
उसमें जम्बीरी नींबूका रस भर कर धूपमें रखदें। तत आकृष्य संमर्य करण्डे तं विनिक्षिपेत् ।
जब तांबा द्रवीभूत हो जाय तो उसमें १। तोले रसोऽयं सर्वरोगनो नृणामुदयभास्करः॥
शुद्ध पारा मिलाकर घोटें। (पुटपाक करें) हन्ति शूलानि सर्वाणि तमांसीव दिवाकरः।
यह रस उदररोग, सृजन और भगन्दर पर्णखण्डीकया सार्द्ध देयश्चेत्यपरे जगुः॥ ।
नाशक है। पध्यं रोगोचित देयं रसस्यानुचित त्यजेत ॥ [५२०] उदयादित्योरसः शुद्ध पारा १ तोला, शुद्ध गन्धक ४ तोले।
(र. र. स., २०. अ.) दोनोंको खूब घोटकर कजली बनावें फिर ४ पहर | शुद्धस्तं द्विधा गन्धं मद्य कन्याद्रवैदिनम् । तक नींबूके रसमें धोटें । और उसे तांबेके २ तोले । तद्गोलं हण्डिकामध्ये ताम्रपात्रेण रोधयेत् ।। महीन पत्रोंपर लेपकरके खरल में रखकर उसपर | सूतकात्रिगुणेनैव शुद्धेनाधोमुखेन वै । नींबूका इतना रस डालें कि वह पत्र रसमें डूब- पार्वे भस्म निधायाऽथ पात्रोद्धं गोमयं जलम् ।। जायं । अब इसे तेज धूपमें सुखावें और गोला | किश्चित्किञ्चित्प्रदातव्यं चुल्लयां यामद्वयं पचेत् बनाकर मूषामें बन्द करके कुक्कुट पुटमें ३ पुट चण्डाग्निनोद्धृत्य ततः स्वागशीतं विचूर्णयेत् ॥ दें। कुक्कुट पुट साधारण चूल्हेमें ही लगा देनी काकोदुम्बरिकावहित्रिफलाराजघृक्षकम् ।
विडंग वाकुचीबीजं क्वाथयेत्तेन भावयेत् ॥ ___पुट देनेके बाद निकाल कर महीन चूर्ण करके दिनैकमुदयादित्यो रसो भक्ष्यो द्विगुश्चकः । शीशीमें भर कर रखें।
खदिरस्य कषायेण बाकुचीबीजचूर्णकम् ।। ___ इसे यथोचित्त अनुपानके साथ सेवन करने | | तुल्यं मृद्वग्निना पिण्डं जातं यावत्पचेल्लघु । और पथ्य पालन करनेसे सब प्रकारके शूल और | | त्रिनिष्कं तद्रविक्षीरैः काथैवा त्रिफलैरनु ॥ अन्य समस्त रोगोंका नाश होता है। त्रिदिनान्ते भवेत्स्फोटः सप्ताहे वा न संशयः।
चाहिये।
For Private And Personal Use Only