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उकारादि-रस
(१७७)
नीली गुश्चा च कासीसं धत्तूरं हंसपादिकाम् ॥ । [५२१] उदरनरसः (र. र. स. १६ अ.) सूर्यावर्त चाम्लपर्णो तुल्यं पिष्ट्वापलेपयेत् ।। जीमूतलोहरसगन्धशिलालताम्र स्फोटस्थाने प्रशान्त्यर्थ सप्तरात्रं पुनः पुनः॥ व्योपाग्निकुष्ठमुशलीविपदीप्यचूर्णम् । श्वेतकुष्ठं निहन्त्याशु साध्यासाध्यं न संशयः।। निम्बूकनीरलुलितं गुटिकी कृतं
शुद् पारा ५ तोले, शुद्ध गन्धक १० तोले, तद्भक्तं निशासु मधुना सकलोदरनम् ।। दोनोंकी कजली करके एक दिन धीकुमारके रसमें अभ्रकभस्म, लोहभस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध घोटकर उसका गोलासा बनाकर उसे एक हांडीमें | गन्धक, शुद्ध मनसिल, शुद्ध हरताल, तात्रभस्म, रक्खें और उसके ऊपर पारेसे तीन गुने वजनी शुद्ध | त्रिकुटा, चीता, कूठ, मूसली, शुद्ध मीठा तेलिया ताम्बे का बरतन ( कटोरी आदि ) उल्टा करके और अजवायन । प्रथम पारा गन्धक की कजली ढक दें और ( कटोरी की सन्धिको चिकनी मिट्टी | बनावें फिर उसमें अन्य द्रव्योंका चूर्ण मिलाकर आदि से बन्द करके ) उसके चारों ओर राख | गालिया बनावे । भरकर उसे चूल्हेपर चढ़ावें । अब इसके नीचे २ |
इन्हें रातको शहदके साथ सेवन करने से पहर तक तेज आग अलावें और उस तांबेके बर
सब प्रकार के उदररोगोंका नाश होता है। तनके ऊपर जराजरा करके गोबर का पानी डालते
[५२२] उदरध्वान्तसूर्यः
(र. स. क. ४ उल्ला) रहे । इसके बाद हांडीके स्वांग शीतल होजानेपर
शुल्वश्यामास्नुहीदन्तीपथ्यानेपालकाः क्रमात् । तांबेके पात्र सहित औषधिको निकाल कर पीसलें
भूद्वये कैकाग्नियुग्वल्लानेतानुष्णाम्बुना पिबेत् ॥ और फिर काकोदुम्बरिका (गूलर भेद ), चीता,
अष्टोदराणि हन्त्येष विशेषेण जलोदरम् । त्रिफला, अमलतास, बायबिडंग और बाबचीके
आध्मानगुल्मशूलन उदरध्वान्तभास्करः॥ काथमें १-१ दिन घोटे।
___ ताम्रभस्म १ वल्ल (२-३ रत्ती) निसोत वाध-खरक काथम समान भाग | २ वल्ल, स्नुही ( सेहुंड-थोहर ) १ वल्ल, दन्ती १ बाबचीका चूर्ण मिला कर मंदाग्निपर पकार्व, जब | वल्ल, हैड ३ वल्ल, शुद्ध जमालगोटा २ वल्ल । लुगदीसी होजावे तो ३ निष्क (६-९ रत्ती)
| सबका महीन चूर्ण करें। इसे गर्म पानीके साथ इस लुगदीके साथ २ रत्ती दवा खाकर उपरसे
सेवन करनेसे आठ प्रकारके उदर रोग, अफारा, आकका दूध या त्रिफले का काथ पियें। गुल्म, शूल और विशेषतः जलोदरका नाश होता है।
. इससे तीसरे या सातवें दिन सफेद कोढ़के [५२३] उदरामयकुम्भकेसरी रसः स्थान पर छाला पड़ जायगा, उसके उपर नीली, |
(र. सा. सं; प्ली.) चोटली, कसीस, धतूरा, हंसपादी, सूरजमूखी और रसगन्धकभस्मताम्रकं चांगेरी समान भाग लेकर सबको पीसकर ७ दिन कटुकक्षारयुगं सटङ्कणम् । तक लेप करें। इससे निसंदेह साध्य असाध्य श्वेत कणमूलकचव्यचित्रक कुष्टका अत्यन्त शीघ्र नाश होता है।
लवणानि यमानी रामठम् ॥
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