________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१७२)
भारत-भैषज्य रत्नाकर।
एषोंगरागः कथितोंगनाना । गोषसंस्वेदहरः प्रवर्षः । जंघाकषायश्चनराधिपानाम् ॥
सिरस, लामजक(खस भेद) नागकेसर और हैड, लोध्र, नीमके पत्ते, करंजवे की छाल, | लोधकी मालिश करने से त्वग्दोष तथा स्वेद (पसीने) और अनारके छिलके, सबका चूर्ण करके रक्खें। | का नाश होता है। यह उबटना स्त्रियोंके रंगको निखारता और घोड़े [५०८] उबटना (३) (इ. नि. र. । मेद.) पर चढ़ने से जंघामें जो चिन्ह हो जाता है उसे | प्रियंगलोधाभयचन्दनानि दूर करता है।
शरीरदोर्गन्भ्यहरं प्रदिष्ठम् । [५०७] उपटना (२) (वृ. नि. र. । भेद.) फूल प्रियंगु, लोध, खस और चन्दन का शिरीषलामजकहेमलोधैरत्व
लेप करने से शरीरकी दुर्गन्ध नष्ट होती है।
__ अथ उकारादि धूप-प्रकरणम् [५०९] उपवंशहरो (लिङ्गव्याधिहरो)। लौंग ९ नग, कपूर चनेके बराबर, शिंगरफ,
धूपः (र. र. स., अ. २५) पलाश और तालमखाने के बीज १-१ तोला लवङ्गजायों नवकं कर चणसंमितम् । लेकर सबको खूब घोटें यहां तक कि कजल के दरद तोलमानं च सवै खल्वे विमर्दयेत् ॥ | समान हो जाया फिर इसकी चौदह पुड़िया बनावें। प्रमाक्षं कोकिलाः सर्व यत्नेन मर्दयेत् ।।
रविवार के दिन अरने उपलों की अंगारी पर यावत्कज्जलसंकाशं श्यामतां च तथैव हि ॥
| एक पुड़िया डाल कर और उससे जो धुवां निकले चतुर्दशसमा कार्या पुडिका बन्धयेद्विपक। उसे श्वासोच्छवास के द्वारा अन्दर खींचें । धुवां रविवारे समादेया बंगारे छगणोद्भवे ॥ खींचते समय मुंहमें पान रखना और मुंहको कपड़े ai निक्षिप्याऽथ संगोप्य नासिका विकृता नयेद से ढांप लेना चाहिये । मुखमाच्छाद्य श्वासेन यातायातेन पाहयेत् ॥
" वीटिकापूर्णवदनो द्विवारं कारयेत्सदा।
इसी प्रकार ७ दिन तक प्रतिदिन २ बार
.धूनी लें और आठवें दिन स्नानादि करें। इस एवं सप्तदिनं कृत्वा पश्चात्स्नानादिकं चरेत् ।। पथ्यं निर्लवणं देयं जलं शीतं निषेवयेत् ।
" | प्रयोग से लिंग-व्याधि (उपदंश) का नाश होता है। अनेन योगराजेन लिंगव्याधिः प्रशाम्यति ॥ पथ्य-लवण रहित आहार और शीतल जल।
For Private And Personal Use Only