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उकारादि-लेप
(१७१)
चीज़ोंका सारभाग इस हांडीमें आचुका है तब । बारबार पानी भरता रहे और गरम होनेपर निकायन्त्रको धीरेसे उतारकर पृथ्वीमें रखदे जिससे वह | लता रहे । इस तेलको उपदंशके धावोंपर लगाने से घण्टे आध घण्टेमें ठंडा हो जाय फिर डमरूयन्त्रकी | सब घाव अच्छे होजाते है और इनके अलावा मुद्रा को खोलकर दूसरी हांडीमें जमेहुए उन तीनों | सर्व प्रकारके घाव नष्ट होजाते हैं । जब घाव सूखा चीजोंके कीचके समान घनभागको निकाल ले। सा हो जाय तब उसके ऊपर गादे कपड़े, छाना उसमेंसे एक छटांक लेकर एक छटांक घीके साथ हुआ त्रिफलाका चूर्ण बुरक देना चाहिये । कोई कटोरीमें रखकर अग्निपर पिधलाले जब घी और कोई वैध त्रिफलाकी भस्मको भी बुरकते हैं । यदि कीच एक जीव होजाय तब कटोरीको अग्निसे ऐसी इच्छा हो कि फिर गरमी उत्पन्न ही न होने उतारकर रखले । यह गरमी (आतशक) के घावोंकी पावे जड़से ही निकल जावे तो वह रोगी छटांक उत्तम मलहम बनकर तैयार होगई । इस मलहमको | भर त्रिफलाके क्वाथको या शहदके साथ एकतोले लिङ्गके ऊपर घावोंपर दिनमें दो दफे लगावे परन्तु गन्धक को रोज़ रोज़ एक महीने तक सेवन करे। प्रथम त्रिफलाके काढ़ेसे घावोंको धो लिया करे | परन्तु गन्धक चाटने के बाद दो तोले चित्रकका
और छटांक भर त्रिफलाके काढ़को प्रातःकाल और क्वाथ भी पीना चाहिये । यदि गन्धक खानेके रात्रिको पिया भी करे । त्रिफला पीनेके बाद या समय नोन न खाय तो अच्छी बात है यदि नोन पहिले ही एक रती ताम्रभस्म मधुके साथ चाट | बिना नहीं रहा जाय तो जहांतक हो सके थोड़ा लिया करे ताम्रभस्म नहीं हो तो खाली त्रिफला से | खाया करे । नोनके खानेसे कुछ विशेष शंकाकी भी काम चल सकता है। त्रिफलाके क्वाथकी | बातनहीं है किन्तु गन्धकका अल्प गुण हो जाता पीनेकी इच्छा नहीं हो तो एक तोला कपरछन है। जिस प्रकार राल, मोम, गन्धाविरोजेका तेल किया हुमा त्रिफलाका चूर्ण शहदके साथ दोनों ! गरमीके घावोंको अकसीर है उसी प्रकार हरितालका समय चाटा करे। अथवा उन तीनों चीज़ों के या धका तेल
या गन्धकका तेल भी बहुत उत्तम है। सारका तेल ही निकाल ले । उसकी विधि यह है
[५०५] उपोदिकाद्यभ्यंगः कि नलीयन्त्र (भवका) के चतुर्थांश भागमें बालु
वृ. नि. र., बं. से; अर्बु.) (रेता)भरदे फिर उस सारके समान सेंधानोंन मिलाकर (कोई कोई वैद्य चतुर्थाश चतुर्थाश हरिताल उपोदिकारसाभ्यक्तास्तत्पत्रपरिवेष्टिताः। और गन्धक भी मिला दिया करते हैं) उसे बालूपर
प्रणश्यत्यचिरान्नृणां पिडिकाबंदजातयः ।। रखदे और उस यन्त्रको ढक्कनसे ढककर तेल गिरने
पौदीने के पत्तोंका रस लगाकर उसपर पौदीने वाली नलीके तरफ किंचित् झुकाकर भवका यन्त्रको ।
के ही पत्ते बांध देने से अर्बुदादिका अत्यन्त शीघ्र चूल्हे पर रखे जिसमें बाहर टपकने वाले तेलको | नाश होता है। नलीतक दूर नहीं जाना पड़े। जब नलीके द्वारा। [५०६] उबटना (१) (वृ. नि. र. । मेद.) तेल टपकना शुरू हो तब उसके नीचे एक प्याला हरीतकीलोध्रमरिष्ट पत्रपूतत्वचो रखदे, परन्तु यह स्मरण रहे कि भवकाके ढक्कनमें " दाडिमवल्कलं च।
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