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इकारादि-गुटिका
अथ इकारादि गुटिकाप्रकरणम् [४५७] इन्दुकला वटिका (भै. र. परिशि.) | [४५९] इन्द्रब्रह्मवटी (र. सा. सं. अपस्मारे) शिलाजत्वयसीहेमं संमार्जकवारिणा। मृतसताभ्रक तीक्ष्णं तारं ताप्यं विषं समम् । गुञ्जामात्रावटी कृत्वा कुर्याच्छायाविशोषिताः पाकेशरसंयुक्तं दिनैकं मर्दयेद् द्रवैः ॥ मसरिकायां विस्फोटे ज्वरे लोहितसंज्ञके। स्नुह्यग्निविजयैरण्डवचानिष्पावशूरणेः । एकैको दापयेदासां सर्वबणगदेषु च ॥ | निर्गुण्डयाश्च द्रवैर्मध तद्गोलं पाचयेत्पुनः ॥
शुद्ध शिलाजीत, लोह भस्म, स्वर्ण भस्म । सब | कंगुनीसर्षपोत्थेन तैलेन गन्धसंयुतम् । समान भाग लेकर अर्जक (तुलसी भेद) के रसमें | ततः पक्त्वा समुद्धृत्य चणमात्रा वटी कृता॥ घोटकर १-१ रत्ती की गोलियां बनाकर छाया में इन्द्रब्रह्मवटीनाम भक्षयेदाकद्रवैः । सुखावे । यह गोलियां मसूरिका, विस्फोटक, | दशमूलकषायश्च कणायुक्तं पिबेदनु ॥ लोहित ज्वर और बण आदि के लिये उपयोगी हैं। | अपस्मार जयत्याशु यथा सूर्योदये तमः॥ मात्रा एक गोली।
- रससिन्दूर, अभ्रक भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म, [४५८] हन्तुवटी (भै. र. कर्ण) चांदी भस्म, सोनामक्खी भस्म, शुद्ध मीठा तेलिया, शिलाजत्वभ्रलौहानि समानि हेमपादिकम् । | कमल केसर, शुद्ध गन्धक । सब चीजे समान काकमाचीवरीधात्रीपद्यानाम्भसा पृथक् ॥ | भाग लेकर थूहर के दूध, चीते की जड़के रस, भावयित्वा वटी कुर्याद् द्विगुञ्जाफलमानतः। भांग, एरण्ड, बच, सेम, जमीकन्द, और संभालु धात्रीतोयेन संमद्य प्रातःप्रातःप्रयोजयेत् ॥ | के रसमें १-१ दिन घोटकर गोला बनालें।। कणनादादयःसर्वे गदा वातोद्भवाश्चये। इस गोलेको कंगनी और सरसों के तैल में प्रमेहा विंशतिश्चापि नश्यन्त्येतभिषेवणात् ॥ | पकावें और फिर चनेके बराबर गोलियां बनाकर सुधावित्रावनादिन्दुर्जगतां तापहधथा। रक्खें । इन्हें अद्रक के रसके साथ खिलाकर तथैवेन्दुवटीनाम्ना रोगतापनिसदनी ॥ ऊपर से पीपल का चूर्ण मिलाकर दशमूल का काथ
शुद्ध शिलाजीत, अभ्रक और लोह भस्म, | पिलाया जाय तो अपस्मार का अत्यन्त शीघ्र प्रत्येक ४-४ भाग, स्वर्ण भस्म १ भाग । सव | नाश होता है। को एकत्र करके मकोय, शतावर, आमला और [४६०] इन्द्रवटी। कमल के रस में पृथक् पृथक् भावना देकर २-२ | (र. सा. सं, र. का. धे, प्रमेह) रत्ती की गोलियां बनावे । इन्हे आमले के रस में मृतं सूतं मृतं वङ्गमर्जुनस्य त्वचान्वितम् । घोटकर प्रातःकाल सेवन करने से कर्णनादादि तुल्यांशं मईयेत्खल्वे शाल्मल्यामूलजैवैः ॥ वातज रोग और २० प्रकार के प्रमेहों का | दिनान्ते वटिका कार्या माषमात्रा प्रमेहहा । नाश होता है।
एषा इन्द्रवटीनाम्ना मधुमेहप्रशान्तकृत् ।।
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