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(१६०)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
रससिन्दूर, बंगभस्म और अर्जुन की छाल । | अपस्मारविषोन्मादनाशनं तद्रसायनम् ॥ सब समान भाग लेकर १ दिन सेंभल की जड के मुंई आमले का रस, ईख का रस, बंसलोचन, रसमें घोटकर १-१ माशे की गोलियां बनावें । प्रत्येक १-१ सेर, चीनी २५० तोला । कोंच के इनके सेवन से प्रमेह और मधुमेह का नाश | बीज, काली मिर्च, तेजपात, दालचीनी तथा होता है।
इलायची २०-२० तोला लें। [४६१] इक्ष्वादिमोदकं (वृ. नि. र., क्षय.) इनमें से चूर्ण करने योग्य औषधियों का उच्चटेक्षुरसः क्षौद्रं तुगाक्षीर्याश्च बुद्धिमान् । चूर्ण करके सबको एकत्र मिलाकर मथनी (रई) से प्रस्थं प्रस्थं गृहीत्वा तु शर्करार्धतुलां तथा ॥ खूब मथें और फ़िर ५-५ तोले के मोदक आत्मगुप्ताफलानां च कुडवं मरिचस्य च। | बनाकर रक्खें ।। त्रिसुगन्धं कृतावापं मंथानेन विमंथयेत् ।। । इन्हें दोनों समय अथवा एक समय अग्नि पलिकान् मोदकान्कृत्वा स्थापयेद्भाजने शुभे। बलानुसार सेवन करावें और ब्रह्मचर्य व्रत और एतत द्विकालमेकं वा खादेदग्निवलं प्रति ॥ पथ्यादि पालन करावें इसके सेवन से संग्रहणी, वटिकां नियताहारो ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः। ११ प्रकारके यक्ष्मा और भूतावेश का नाश ग्रहण्यां यक्ष्मिणे सद्यश्चैकादशविधे तथा ॥ होता है एवं स्वर, कान्ति, तुष्टि, पुष्टि, आयु स्वरवर्णवलौदार्यतुष्टिपुष्टिविवद्धनम् । | आदि की वृद्धि होती है । क्षीण वीर्य एवं व्याकुआयुष्यं पुष्टिकं चाथ भूतोपहतचेतसाम् ।। लताग्रस्त वृद्धों के लिये हितकर, वाजीकरण, व्याकुलकृतदेहानां वृद्धानां क्षीणरेतसाम् । वंध्यत्व नाशक, धनुष, मद्य और स्त्रीसमागम से वाजीकरणमप्येवं वंध्यानां पुत्रदं परम् ॥ उत्पन्न खिन्नता, हृद्रोग, तिल्ली, मूत्रकृच्छ, अपतन्त्रक, धनुस्त्रीमद्यभारैश्च खिमानां बलवर्द्धनम् । अपस्मार, विपदोष और उन्माद नाशक तथा हृत्प्लीहग्रहणीदोषमूत्रकृच्छापतंत्रकम् ॥ रसायन है ।
अथ इकारायवलेहप्रकरणम् [४६२] इक्ष्वाद्यावलेहः (वृ. नि. र. कासे) । सफेद चन्दन, मुल्हैठी, पीपल, दाख, लाख, काकइविक्षुबालिकापद्ममृणालोत्पलचंदनैः। डासिंगी और शतावर, १-१ भाग, बंसलोचन मधुकं पिप्पली द्राक्षा लाक्षा शृंगी शतावरी ॥ | २ भाग, मिश्री सब से चारगुनी । सबका चूर्ण द्विगुणा च तुगाक्षीरी सिता सर्वेश्चतुर्गुणा।
' करके शहद और धी में मिलाकर चाटने से क्षतज लिह्यातं मधुसर्पिभ्यां क्षतकासनिवृत्तये ॥
ईख, तालमखाना, कमल का डंठल, नीलोफर, | कास (खांसी) का नाश होता है।
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