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भारत-भैषज्य रत्नाकर
अथ आकारायासवप्रकरणम् [४२८] अवर्तक्याद्यासवः ( ग.नि.) । दद्रु मासयुगलेन निश्रितम् ॥ नेत्रभेषजशिफापलाष्टकं
सनाय की जड़ ४० तोला, एलवा ७॥ तोला, सार्धमैलपलमधमस्तकीम् । | रूमीमस्तकी २।। तोला, रेवन्द चीनी २॥ तोला । हेमजापलमेकतः कृतं
| सबको ३२ सेर पानी में मिलाकर सन्धान करके द्रोणवारिमिलित दिनत्रयात् ।। ३ दिन तक रक्खा रहने दें। पश्चात् छानकर यः पिबेद्विपलिंक दिनोदये रखें । इसे प्रातः और सायंकाल १० तोलेकी
नीरमस्तसमये समाहितः। मात्रा में २ मास तक सेवन करने से कमर का तस्य नश्यति कटि समुद्भवं दाद मिट जाता है।
अथ आकारादि लेपप्रकरणम् [४२९] आमवातहरो (अहिंस्त्रादि)लेपः। आमकी गिरी और है। दोनों समान भाग (यो.र.)
लेकर चर्ण करके दूधमें पीसकर लेप करनेसे भयंकर अहिंसाकेम्बुकामूलं शिग्रु वल्मीकमृच्च यैः। दारूणका नाश होता है। मूत्रपिष्टै श्च कर्तव्य उपनाहोऽनिलामजित् ॥ [४३१] आरग्वधादिलेपः (कृ.नि.र.त्वग्दोघे) कटेली, सुपारी की जड़, सौंजना और दीमक
आरग्वधदलैःपिष्टैर्लेपकांजिकयुक्कृतः । की मिट्टी । इन्हें गोमूत्रमें पीसकर लेप करनेसे आमवात (गठिया) का नाश होता है।
करित्वक्दद्रुकुष्ठानि हन्ति पामां विघर्चिकाम् ॥ [४३०] आम्रबिजादिलेपः (वृ.नि.र.क्षुद्र.) अमलतास के पतों को कांजी में पीसकर लेप आम्रबीजस्य चूर्ण तु शिवाचूर्ण समं द्वयम् । | करने से करित्वक, दाद, कुष्ट, पामा और विचर्चिका दुग्धपिष्टःप्रलेपोऽयं दारुणं हन्ति दारुणम् ॥ . का नाश होता है।
___ अथ आकारादि नस्यप्रकरणम् [४३२] आरग्वधादि नस्य और लेप [४३३] आर्द्रकादिनस्यम् (१) (वृ. नि. र, वृ. मा. ग्रन्थ्या )
(वृ. नि. र. सन्नि.) आरग्वधशिफां पिष्ट्वा सम्यक्तन्दुलवारिणां। आद्रेकखरसोपेतं सिन्धुत्थं सकटुत्रिकम् । तेन नस्यप्रलेपाभ्यां गंडमाला समुद्धरेत॥ प्रबोधाय मुखे दद्यान्नस्य वा मरिचेन च ॥ ___ अमलतासकी जड़को चावलोंके पानी में पीसकर अद्रकके स्वरसमें सेंधानामक और त्रिकुटे का नास लेने और लेप करनेसे गण्डमाला का नाश चर्ण मिलाकर रोगी के मुखमें लगाने ( जीभ आदि होता है।
में मलने ) से अथवा काली मिरचों की नसबार
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