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आकारादि-तैल
(१४९)
अथ आकारादि तैल प्रकरणम् [४२३] आगारधूमतैलम् फिर उत्पन्न नहीं होते। (वृ, नि., भा. प्र. उपदंशे)
[४२५) आरग्वधाद्य तेलम् आगारधूमो रजनी सुराकिण्वं च तैत्रिभिः ।
(भा. प्र. म. खं, भै. र. कुष्ठा) भागोत्तरः पचेत्तलं कण्डु शोथरुजापहम् । आरग्वधं धवं कुष्ठं हरितालं मनःशिला । शोधनं रोपणं चैव सवर्णकरणं तथा ।
| रजनीद्वयसंयुक्तं पचेत्तैलं विधानवित् ॥ ___धरका धुवां १ भाग, हल्दी २ भाग, सुरा- | एतेनाभ्यञ्जनादेव क्षिप्रं श्वित्रं विनश्यति ॥ किण्व ३ भाग । इन पदार्थो से सिद्ध तैल खुजली, अमलतास, धव, कूट, हरताल, मनसिल, सूजन और पीड़ा नाशक तथा शोधन, रोपण | हल्दी और दारुहल्दी । इनके कल्क से सिद्ध तैल (घाव को शुद्ध करने और भरने वाला) एवं नवीन | श्वेत कुष्ठ का अत्यन्त शीव्र नाश करता है। त्वचाके रंगको ठीक करने वाला है। [४२६] आदित्यपाक तैलम् [४२४] आरग्वधादितैलम्
(बृ. नि. र., वा. र.) (र. र. यो. व्या)
मञ्जिष्ठात्रिफलालाक्षालाङ्गलीरात्रिगन्धकैः। आरग्वधमलपलं कर्षद्वितीयन्तु शङ्खचूर्णस्य। चूर्णितस्तैलमादित्यपाकं पामाहरं परम् ॥ हरितालस्य च खरस्य मूत्रप्रस्थे कटुतैलम् ॥ मजीठ, त्रिफला, लाख, कल्हारी, हल्दी और पक्कं तैलन्तु दत्वा सशंखहरितालचूर्णित लेपात गन्धक । इनके कल्क से सिद्ध तैल पामा (खुजली) निर्मूलयति हि रोमाण्यन्येषां सम्भवो नैव ॥ | नाशक है। खरोगर्दभःशंखहरितालयोमिलित्वा पादिकत्वम् [४२७] आरनालतैलम् (पृ. नि. र., वा.र.)
अमलतास की जड़ ५ तोला । शंख चर्ण २॥ | आरनालाडके तैलं पादसर्जरसं भृतम । तोला। हरताल २॥ तोला । इनके कल्क और २ सेर प्रस्थस्ये निर्जिते तोये ज्वरदाहातिनुत्परम् ॥ गधे के मूत्र के साथ कड़वा तेल सिद्ध करें इस | आरनाल ८ सेर और सर्ज रस का क्वाथ तेलमें चौथा भाग शंख और हरताल का चूर्ण | १ सेर इनसे २ सेर तैल सिद्ध करें । यह तैल ज्वर मिलाकर लेप करने से बाल उड़ जाते हैं और एवं दाह का नाश करता है।
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