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आकारादि-रस
(१५१ )
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देनेसे मूर्छा ( बेहोशी ) दूर होती है। फूल और मुलैठीके चूर्ण को स्त्री के दूध में मिलाकर [४३४] आर्द्रकादिनस्यम् (२) नास लेनेसे नकसीर बन्द होती है।
(वृ. नि. र. रक्तपि.) [४३५] आम्रादिनस्यम् (वृ.नि.र. रक्तपि.) शृंगगैरिकयौः कल्कं धातक्या मधुकस्य च। आम्रास्थि च पलाण्डुर्वा नासिकाच्युतरक्तजित् । घाणसु ते सृजिप्रोक्तं योषरक्षीरेण नावनम् ॥ आमकी गिरी या प्याज के रसकी नसवार अदरक ( सोंठ) और गेरूको अथवा धायके | लेने से नकसीर बन्द होती हैं।
___ अथ आकारादि रसप्रकरणम् [४३६] आदित्यरसः (वृ.नि.र. अजी.) । द्विगुजं भक्षयेन्नित्यं हन्ति मेहं चिरोद्भवम् ।। दरदं च विष गन्धं त्रिकटु त्रिफला समम् । | गुञ्जामूलं तथा क्षौद्रेग्नुपानं प्रशस्यते । जातीफलं लवङ्ग च लवणानि च पञ्च वै ॥ बंग भस्म, स्वर्ण भस्म और सिन्दूर। इन्हें सर्वमेकीकृतं चूर्णमम्लयोगेन सप्तधा । | समान भाग लेकर शहद में घोटकर दो दो रत्ती भावयित्वा वटी कुर्याद् गुञ्जाधप्रमितां बुधः।। की गोलियां बनावे ! इसे चोटली की जड़ के चूर्ण रसोयादित्यसंज्ञोयमजीर्णक्षयकारकः । और शहद के साथ सेवन करते से पुराना प्रमेह भुक्तमानं पाचयति जठरानलदीपनः॥ नष्ट होता है। शुद्ध शिंगरफ, शुद्ध मीठा तेलिया, शुद्ध
| [४३८] आनन्दभैरवो रसः (२) गन्धक, त्रिकुटा, त्रिफला, जायफल, लौंग और पांचों |
( भै.र;बृ.नि.र; अति.) नमक । सब चीजों का चूर्ण समान भाग लेकर
दरदं मरिचं टङ्गममृतं मागधीसमम् ।। सबको एकत्र करके + अम्ल वर्ग अथवा कांजीकी
श्लक्ष्णविष्टन्तु गुञ्जकं रसमानन्दभैरवम् ।। सात भावना देकर आधी रत्ती की गोलियां बनावें ।
लेहयेन्मधुना चानु कुटजस्य फलत्वचोः। यह रस अजीर्ण नाशक, अग्निदीपक और पाचक है [४३७] आनन्दभैरवो रसः (१)
चूर्णितं कर्षमात्रन्तु त्रिदोषोत्थातिसारजित् ।। (र. चि. म. अ.९)
दध्यन्नं दापयेत् पथ्यं दध्याज्यं तक्रमेव वा । बंगभस्म मृतं स्वर्ण रसं क्षौद्रविमईयेत् ।
पिपासायां जल देय विजया च हिता निशि ॥
शुद्ध शिंगरफ, काली मिर्च, सुहागेकी खील, मम्लवेतसजम्बोरलुमाम्लवणकाम्लकाः ।
शुद्ध मीठा तेलिया और पीपल सब चीजें समान भाग नारंगं तिन्तिडी च चिचापत्रञ्च निम्बुकम् ॥
लेकर महीन चूर्ण करके रक्खें । इसे १ रत्ती की चालेरी दाडिमञ्चव करमर्द तथैव च। मात्रा में शहद तथा इन्द्रयव और कुड़े की छाल के पष चाम्लगणः प्रोक्तो वेतसाम्लसमायुतः ॥ तोला चर्ण के साथ सेवन करने से त्रिदोषज ___ भन्लवेत, जम्मीरी नींबू, विजौरा नींबू, चनेका खार, |
अतिसार का नाश होता है। पथ्य-दही भात, नारजी, तिन्तिडी, इमली के पत्ते, नींबू, चांगेरी, दाडिम और कमरख । इन चीजों का नाम अम्लवर्ग है। बकरी का दही तथा तक (छाछ ) और जब प्यास
+ अम्लवर्ग
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