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आकारादि-गुटिका
(१३७)
सोंठका चूर्ण १ सेर, अजवायनका चूर्ण आधा सेर, समभागं विचूाथ चूर्णाद्विगुणगुग्गुलुः ।। जीरेका चूर्ण १० तोला, सोया, लौंग, सुहागे की गुग्गुलोः पादिकं देयं त्रिवृतामूलवल्कलम् । खील, काली मिर्च,निसोत, त्रिफला, जवाखार,पीपल, तत्समं चित्रकं देयं घृतेन परिमईयेत् ॥ कचूर, इलायची, तेजपात, चव, अभ्रक भस्म, लोह खादेन्माषदयश्चास्य त्रिफलाचूर्णयोगतः । भस्म और बंगभस्म । इनमें से प्रत्येक का चूर्ण आमवातारिवटीका पाचिका मेदिका मता ।। ५-५ तोला । खांड सब औषधियोंसे ३ गुनी । आमवातं निहन्त्याशु गुल्मशूलोदराणि च । सब को शहद और घी में मिलाकर ११-१। तोला यकृरप्लीहोदराष्ठीलाकामलापाण्डवरोचकान् ॥ के मोदक बनावें । इसमें से प्रतिदिन प्रातःकाल ग्रन्थिशूलं शिरःशूलं वातरोगश्च गृध्रसीम् । एक २ मोदक खाकर ऊपर से घृत युक्त दूध पिया गलगण्डं गण्डमालां क्रिमिष्टभगन्दरान ॥ जाय तो शूल, रक्त पित्त, अम्लपित्त और आमवात विधिमन्त्रवृद्धिश्च अर्शासि गुदजानि च । (गठिया) का नाश होता है । इन आमवात गज
आमवातारिवटिका पुरेशानेन चोदिता। सिंह मोदकोंको ब्रह्माने कहा है।
___शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, लोहभस्म, तूतिया, [३९६] आमलक्यादि गुटिका
| सुहागे की खील और सेंधा नमक यह प्रत्येक (वृ. नि. र., शा. ध. म. ख. अ. ७, औषधि एक २ भाग लेवे । शुद्ध गूगल २ भाग, भा. प्र. म. खं. तृष्णा .)
निसोत की जड़ की छाल आधा भाग, चीते की आमलं कमलं कुष्ठं लाजाश्च क्टरोहकम् ।। जड़ की छाल आधा भाग । प्रथम पारा गन्धककी एतच्चूर्णस्य मधुना गुटिकां धारयेन्मुखे ॥ कजली बनाकर उसमें अन्य औषधियों का चूर्ण तृष्णां प्रवृद्धां हंत्येषा मुखशोषं च दारुणम् ।। भिलाकर इन सब औषधियों को एकत्र खरल करके ___ आमले, कमल, कूट, खील और वड़की | घी में धोटकर दो माशे (१॥ माशा) परिमाण कोंपल इन पांच औषधियों का चूर्ण करके शहद में औषधि त्रिफले के चूर्ण के साथ सेवन करें। यह मिला कर गोली बनावे । इसको मुख में रखने से औषधि पाचक, भेदक तथा आमवात, गुल्म, शूल, प्रबल तृष्णा और मुख शोष का नाश होता है। उदररोग, यकृत, प्लीहोदर, अष्टीला, कामला, पांडु, [३९७] आमवातारिः (र. चि. म. ९. अ.) | अरुचि, ग्रंथिशूल, शिरःशूल, वातरोग, गृध्रसी, एरण्डम्लत्रिफलागोमूत्रं चित्रकं विषम् । । गलगण्ड, गण्डमाला, क्रिमि, कुष्ट, भगन्दर, विद्रधि, गुंजैका घृतसंपन्ना सर्वान् वातान् विनाशयेत् ॥ अन्त्रवृद्धि, बवासीर और गुदा के समस्त रोगों का __ अंडकी जड़, त्रिफला, गोमूत्र, चीता और | नाश करनेवाली है। शुद्ध मीठातेलिया इन सब द्रव्यों को पीस कर | [३९९] अपर आमवातारि वटिका एक रत्ती की मात्रा से घी के साथ सेवन करने से
(र. सा. सं.) सब प्रकारके वातरोग नष्ट होते है। रसगन्धौ वरा वह्निर्गुग्गुलुः क्रमवर्द्धितः । [३९८] आमवातारि वटिका (र. सा.सं.)। एतदेरण्डतैलेन मईयेदतिचिक्कणम् ॥ रसगन्धकलौहानं तुत्थं टङ्कणसैन्धवम् । । कर्पोऽस्यैरण्डतैलेन हन्त्युष्णजलपायिनः ।
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