SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३८) भारत-भैषज्य-रत्नाकर आमवातमतीवोग्रं दुग्धं मौद्गादि वर्जयेत् ॥ [४००] आरग्वधादि वर्ती शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, | (वृ. नि. र., सु. सं चि. अ. र; भा. प्र. त्रिफला तीन भाग, चीते की जड़ ४ भाग और म. खं. नाडीव्रण) शुद्ध गूगल ५ भाग लेवे । प्रथम पारा गन्धककी आरग्वधनिशाकोलचूर्णाज्यक्षौद्रसंयुता। कजली बनावे फिर उसमें अन्य औषधियों का चूर्ण सूत्रवर्त्तिव्रणेयोज्या शोधनी गतिनाशिनी ।। मिलाकर अण्डीके तेलमें खूब खरल करे। इसमें से एक तोला औषधि अण्डी के तेल के साथ सेवन ___ अमलतास, हल्दी और बेर इनका चूर्ण करके करे और ऊपर से गरम जल का अनुपान करे तो | उसमें शहद और घी मिलाकर इसमें सूतकी बत्ती अत्यन्त उग्र आमवात रोग नष्ट होता है। इस | को भिगोकर नासूर में रक्खे । यह व्रणको शोधन औषधि पर दूध और मूंग आदि न खाना चाहिये। । करनेवाली तथा व्रण की गति को नाश करनेवाली है अथ आकारादि गुग्गुल्ल प्रकरणम् [४०१] आदित्यपाक गुग्गुलु: (बं. से.) क्वाथ मिलाकर खूब मन्थन करके धूप में सुखाले। पृथक् पलांशं त्रिफला पिप्पली चेति चूर्णितम्। इसी प्रकार दशमूल के क्वाथ की सात भावना दशमूलाम्बुना भाव्यं त्वगैलाईपलान्वितम् ॥ देकर गोलियां बनावें । इसके सेवनसे अस्थिगत, दत्ता पलानि पश्चैव गुग्गुलोर्यटकीकृतः। मनागत और सन्धिगत वायुका नाश होता है। हन्तिसन्ध्यस्थिमज्जस्थान्वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ।। [४०२] आभागुग्गुलुः (च. द. भग्न. ) लेहवद्विगुणेनीयमालोडयालोडथ चातपे ॥ आमाफलत्रिकोषैः सर्वैरेभिः समीकृतैः। दशमूलाम्बुना शोष्यः सप्तवारान् सुगुग्गुलुः ॥ तुल्यो गुग्गुलुरायोज्यो भमसन्धिप्रसाधकः ।। त्रिफले का चूर्ण ५ तोला, पीपल का चूर्ण | ___कीकर, त्रिफला और त्रिकुटा । सब समान ५ तोला, इलायची और दारचीनी का चूर्ण | भाग, शुद्ध गूगल सब के समान । (सब को ६॥-२॥ तोला, शुद्ध गूगल २५ तोला । सबको मिलाकर कूट कर रक्खे) इसके सेवन से सन्धिभंग एकत्र करके उसमें सबसे दो गुना दशमूल का । (जोड़ के खुल जाने) को आराम होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy