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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (१०७) धान्याभ्रक एक भाग, सुहागा दो भाग इन दोनों । बढ़े, शरीर दृढ़ हो जाय, निश्चन्द्र अभ्रक भस्म को इकट्ठा ही घोटकर अंधमूषा बन्ध कर कोयलों जरा और अकाल मृत्यु तथा रोगोंके समूहको नष्ट की तीन अग्नि में फूंक दे। (अथवा गजपुट में फूंक करती है। दे) जब स्वांगशीतल हो जाय तो निकाल कर पीस [३०४] अभ्रकनिश्चन्द्रीकरणम् ले । (निश्चन्द्र भस्म न हो तो फिर इसी प्रकार (रसा. सा.)x फूंके) (निश्चन्द्र होने पर) इस भस्म को सब रोगों सुवचिंकामानमितं गुडं च में प्रयोग करना चाहिये। तयोः समानं गगनं प्रगृह्य । [३०२] छठी विधि (१० पुटी भस्म) संमेल्य हण्ड्याच निधाय सर्व (र.सा.सं.. यो.चि.म., अ. ७ । आ.वे.प्र., अ.४ । । सर्वार्थकां प्रददीत वन्हिम् ।। वृ.यो त; त.४९। रसे. चि.म., अ.भा.प्र.,प्र.खं तीव्राग्नितापेन सशब्दवनिधान्याभ्रकं दृढं मर्चमकक्षीरैर्दिनावधि । निर्याति चेदभ्रकहण्डिकातः। वेष्टयेदपत्रेण चक्राकारन्तु कारयेत् ।। भीतिर्विधेया न तदा कदापि कुञ्जराख्ये पुटे दग्ध्वा सप्तबारान्पुनःपुनः । सुरर्चिका निःसरतीति मथा। ततो वटजटाक्वाथैस्तदेयं पुटत्रयम् ।। पुटैकमात्रेण समुज्झय चान्द्रीं नियते नात्र सन्देहः सर्वरोगेषु योजयेत् ॥ निश्चन्द्रभावं भजतेअमेवम् । धान्याभ्रक को २४ घण्टे आक के दूध में ! मुवचिकापायनियन्यचान्द्रीखूब रगड़े फिर गोल गोल टिकिय वना कर आक निर्भाति चेदयपुटं प्रदेयम् ॥ के पत्रों में लपेट संपुट करे और गजपुट में फूंक ततोभ्रक यामयुगं सताक्ष्य दे शीतल होने पर निकाल कर फिर आकके दृधमें जले निधायाथ करेण मर्दैन । उसी प्रकार रगड़ कर टिकिया बना गजपुट में स्थितं जलं चाप्यवपातनीयं फूंके। ऐसेही सात सात पुट आक के दूध की शनैर्यथाऽभ्रं न परिश्रुतं स्यात् ।। देवे तदनन्तर तीन बड़ की जटा के क्वाथ की । साध्याणि तावद्धि पयांसि यावत् । देवे तो अवश्य अभ्रक की उत्तम भस्म हो जायगी, म्वादोन मासेत सुवचिकायाः॥ इसको संपूर्ण योगोंमें प्रयोग करना चाहिये। वैद्य लोग अभ्रक में सौ सौ पुट देते हैं तो [३०३] अभ्रक भस्म के गुण भी अभ्रक की चन्द्रिका (चमक) नहीं मिटती; निश्चन्द्रमारित व्योमरूपं पीय्ये दृढ तनुम्। और अभ्रको चमक रह जाने से रोगी की आंते कुरुते नाशयेन्मृत्युं जरारोगकदंषकम् ॥ कट जाती हैं जैसे काच की भस्म में चमक रह निश्चन्द्र अभ्रक भस्म (शुद्ध देह मनुष्य जाने से। इसकी चमकके एक ही पुटमें दूर करने सेवन करे तो) आयु की वृद्धि हो, रूप और वीर्य | ___ x इस ग्रन्थमे रसायनसारके जितने प्रयोग १ आ.वे. प्र. में मर्क दुग्ध और अमूल दिये गये हैं उन सबकी टीका मूल ग्रन्थकार (ससे मन लिखा है। । (रसायनकर्ता)की ही लिखी हुई है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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