________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारत-भैषज्य रत्नाकर
दत्वा पुटत्रयं पश्चात् त्रिःपुटेन्मुसलीजलैः। तिक्ताखुपर्णिकामदेनार्कावपिलक्षसुतमातृकाभि त्रिगोक्षुरकषायेण त्रिःपुटेद्वानरीरसः॥
चौलाई, कटैली, नागरवेल (पान), पिण्ड, मोचकन्दरसः पाच्यं त्रिवारं कोकिलाक्षः। तगर, पुनर्नवा, हुलहुल, मण्डूकपर्णी, (ब्राह्मी)कुटकी, रसैः पुटं लोधकैस्तु क्षीरादेकपुटं पुनः॥ मूषकपर्णी, मैनफल, आक और शतावर ये १३ दना घृतेन मधुना स्वच्छया सितया तथा। द्रव्य अभ्रक को मारने वाले हैं (शुद्ध अभ्रक को एकमेकं पुटं दद्यादभ्रस्यैवं मृतिर्भवेत् ॥ अलग इनके रसमें रगड़ कर गजपुटमें फूंक देनेसे सर्वरोगहरं व्योम जायते योगवाहिकम् ।
भस्म हो जाती हैं)॥ कामिनीमददर्पघ्नं शस्तं पुंस्त्वोपघातिनाम्।। [३००] चौथी विधि (र. रा. सं.) पृष्यमायुष्करं शुक्रवृद्धिसन्तानकारकम् ॥
रम्भादिनानं लवणेन पिष्टवा धान्याभ्रक को लेकर नागरमोथे के क्वाथमें
चक्रीकृतं तद्दलमध्यवत्ति । खरल कर टिकिया बनावे फिर संपुट कर गजपुट
दग्धेन्धनेषु व्यजनानिलेन में फूंकदे, स्वांगशीतल होने पर नागर मोथे के
स्नुह्यर्कमूलाम्बुपुटेन सिद्धम् ॥
रम्भादि गण के रस में (अथवा केलाखार, क्वाथ में खरल करके गजपुट दे। ऐसे तीन पुटें देवे । फिर इसी प्रकार पुनर्नवाका रस, कसौदीका
सजीखार, चनाखार, और नमक इनके जलों में)
शुद्ध अभ्रक को खूब घोट कर टिकिया बना ले रस, नागरवेलके पानका रस, आकका दूध, बटकी जटाका क्वाथ, काली मुसलीका क्वाथ, गोखरूका
फिर इन टिकियों को केलेके पत्रों में रख पंखे की क्वाथ, कौंच का रस, मोचाकन्द का रस, तालम
| पवनसे चैतन्य की हुई कोयलों की अग्निमें फूंके । खानेका रस और पठानीलोध का क्वाथ इनमें से फिर निकाल कर थोहरके दूधमें घोटकर टिकिया प्रत्येककी अलग २ तीन तीन पुटें दे। फिर गाय बना संपुट करे और गजपुट में फूंक दे। ऐसे ही के दूधकी एक पुट दे (कहीं "क्षीरादष्टपुटेन्मुहुः" आकके दूधमें घोटकर टिकिया बना संपुट करे ऐसा पाठ है, अर्थात् गो दूधकी आठ पुटे दे) | और गजपुट में ही फूंके तो अभ्रक की भस्म हो फिर दही, घी, शहद और मिश्रीकी अलग २ एक
जाती है। एक पुट देवे तो अभ्रककी उत्तम भस्म हो जायगी। [३०१] पांचवीं विधि (अभ्रक सत्व विधि) यह भस्म सम्पूर्ण रोगोंको हरने वाली और योगवाही (र.सा.सु., रसे.चि.म.अ.४। र.र., र.म., बृ.या.त., हो जाती है। तथा स्त्रियों के मद को हरण करे, ।
त. ४१ । यो. र., आ.वे.प्र., शा. सं,अ. ४ ) नपुंसकताको दूर करे, शरीरको पुष्ट करे और आयु
धान्याभ्रकस्य भागकं भागौ द्वौ टंकणस्य च । को बढ़ावे एवं वीर्यवर्द्धक और संतानकारक है। ।
पिष्ट्वा तदन्धमूषायां रुद्धा तीवाग्निना पचेत् । [२९९] तीसरी विधि (र. रा. सं,
स्वभावशीतलं चूर्ग सर्वयोगेषु योजयेत् ॥ रसे. चि. म. । अ. ४)
१ मदनाद्रिक पलाशसूत मातृकादीभिर्मतण्डूलीयक-बृहती-नागवल्ली पिंडतगायनवा | देन पुटनैरपि मारणीयम् । रसे. चि. म.
| २ र सा. सु. में टंकण आधा भाग है। हिलमोचिला-मण्डूकपर्णी। अनेक प्रन्थोमैं इसे भस्म लिखा है।
For Private And Personal Use Only