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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (९९) सभिपातं निहन्त्याशु ज्वरांश्च विविधांस्तथा । । बनावे । इनमें से एक अथवा दो गोलीयां खानेसे ___ शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक दो-दो माशे | अजीर्ण शांत हो जाता है, अग्निकी वृद्धी होती है लेकर दोनोंकी कजली करके भांगरा, सुगन्धवाला, | और कफका नाश होता है। निर्गुण्डी, ब्राह्मी, गर्मा, सफेद कोयलकी जड़,शालिञ्च | [२७९] अजीर्णकण्टकोरसः -शाक, कालमारिष (बड़े पत्ते की चौलाई) और सफेद | ( भै. र., रसें. चि. म., अ. ९; यो. र. अजी.) सूर्यावर्तके चार-चार माशे स्वरसकी भावना देकर शुद्धसूतविषगन्धकं समंतुल्यभागमरिचंच चूर्णितं पीछे सोना मक्खी भस्म १ माशा, काली मिर्च १ । मर्दयेत्त वृहत्तीफलद्रवैरेकविंशतिविभावितं पुनः॥ माशा मिलाकर सबको नेपाली तांबेके मूसले से | गुञ्जिकात्रयमिदं सुभक्षितंसद्य एव जठराग्निवर्धनं । घोटकर कजलीके समान करे। फिर मूंगके समान एपकंटकरसोविचिकाजीर्णमारुतगदानिहन्तिच गोलियां बनावे । उनको छायामें सुखाकर अच्छी शुद्ध पारा, शुद्ध वच्छनाग और शुद्ध गन्धक तरह रख छोड़े। जिसने पसीना और उपवास | १-१ भाग तथा काली मिर्च ३ भाग। प्रथम किया हो तथा क्लेशित शरीर और अतिनिर्बल || पारे गन्धककी काली बनाकर और फिर अन्य पुरुषको प्रथम दिन ३ वटी मिट्टीके कोरे शरावमें सबका चूर्ण मिलाकरके कटेलीके फलके रसकी रखकर भगवान भास्करकी पूजा करके उन्हें प्रणाम करें और फिर गोलियोंको पानीमें घोलकर रोगीको | २१ भावना देवे, फिर तीन २ रत्तीकी गोलियां बनावे । एक २ गोली नित्य खानेसे अग्निकी वृद्धि पिलादें। इसी प्रकार दूसरे दिन २ गोली, तीसरे । दिन १ गोली देवे, जितनी गोली देवे उतनी ही तथा विसूचिका अजीर्ण और वातरोगोंका नाश | होता है। सरैया जलकी देनी चाहिएं, और अग्निका बलाबल । [२८०] अजीर्णवल-कालामलो रसः देखकर पथ्य देना चाहिये। यदि इसके सेवन (र. रा. सुं.। अजी.) करनेसे शिरका घूमना, तथा मस्तक शूल हो तो नारायण तैल आदिका मर्दन करना चाहिये। इसके द्विपलं शुद्धसूतं च गन्धकं च समं मतम् । सेवनसे सन्निपात और अन्य विविध प्रकारके ज्वर लोहं तानं हरितालं विषं तुस्थं सबङ्गकम् ।। शीघ्रही नष्ट हो जाते हैं। पलप्रमाणं च प्रथग् लवङ्गं टङ्कणं तथा । [२७८] अजीर्णकंटकोरसः (भा.प्र.। अजी.) | दन्ती मूलं त्रिवृच्चूर्णमेकैकं पलसम्मितम् ।। टकणकणामृतानां सहिङ्गुलानां समं भागाः।। अजमोदो यवानी च द्विक्षारौ लवणानि च। मरिचस्स भागयुगलं निम्बूनीरैवटी कार्या॥ पृथगर्द्धपलं ग्राह्यमेकीकृस्य च भावयेत् । पटिका कलायसदृशीमेको द्वे वा समश्नीयात्। आर्द्रकखरसेनैकविंशतिं पश्च कोलजैः। सत्यमजीर्णे शान्त्यै वह्वेर्बुद्धथैः कफध्वस्त्यै ।। | दशधा भावयेत्तोयैर्गुडूचीनां रसैर्दश ॥ सुहागेकी खील, पीपल, शुद्ध बच्छनाग और | सर्वार्द्ध मरिचं दत्वा काचकुप्यां च धारयेत् । हिंगुल १-१ भाग, काली मिर्च २ भाग लेकर चणमात्रां वटीं कृत्वा छायायां परिशोषयेत् ।। नींबूके स्वरससे खरल करके मटरके समान गोलियां रसोजीर्णवलकालानल एष प्रकीर्तितः। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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