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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१००) भारत-भैषज्य रत्नाकर अनेककालनष्टाग्नेर्दीपनः परमः स्मृतः॥ खा लेनेसे आधे पहरमें वह सब अवश्य पच जाता आमवातकुलध्वन्सी प्लीहपाण्डुगदापहः। है। महाराज भोजकी चार प्रकारके (मधुर, अम्ल, प्रमेहानाहविष्टम्भमतिकाग्रहणीहरः॥ लवण, कटु) रसोंसे युक्त बहुत अधिक भोजन श्वासकासप्रतिश्याययक्ष्मक्षयविनाशनः । | करनेकी इच्छा होने पर सर्वहितैषी गहनानन्दनाथने अम्लपित्तं च शूलं च भगन्दरगुदोद्भवौ ॥ कृपा करके यह रस उन्हें बतलाया था । अष्टोदराणि प्लीहानं यकृतं हन्ति दारुणम् । [२८१] अजीर्णारि रसः (वृ. नि.र.। अजी.) आकण्ठं भोजयित्वा तु खादयेच्च रसोत्तमम् ॥ शुद्धं सूतं गन्धकं च पलमानं पृथक् पृथक् । अर्धयामेन तत्सर्व भस्मीभवति निश्चितम् ।। हरीतकी च द्विपला नागरस्त्रिपलास्मृतः ॥ चतुर्विधरसोपेतं महाभोजनमिच्छतः॥ कृष्णा च मरिच तद्वसिन्धूत्थं त्रिपलं पृथक्। भोजस्य नृपतेः कांक्षा भोजने कृपया कृता। चतुष्पला च विजया मर्दयेन्निम्वुकद्रवैः॥ गहनानन्दनाथेन सर्वलोकहितैषिणा ॥ पुटानि सप्तदेयानि धर्ममध्ये पुनः पुनः । शुद्ध पारा और गन्धक १०-१० तोले, लोह अजीर्णारिरयं प्रोक्तः सद्योदीपनपाचनः॥ भस्म, ताम्रभस्म, हरताल, शुद्ध वच्छनाग, नीला भक्षयेद् द्विगुणं भक्ष्यं पाचयेद् रेचयेदपि ॥ थोथा (भस्म), बंग भस्म, लौंग, सुहागेकी खील, शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक ५-५ तोले, दन्तीमूल और निसोत, ५-५ तोले। अजमोद, अजवायन, सज्जीखार, यवक्षार, पांचों लवण, २॥ हैड़ १० तोले, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, सेंधानमक | १५-१५ तोले, भांग २० तोले । प्रथम पारे -२॥ तोले लेवे। प्रथम पारे गन्धककी कज्जली | गन्धककी कजली बनावें और फिर अन्य औषधियों बनावें और अन्य सबका चूर्ण करके अद्रक के रसकी २१, पंचकोल के काथकी १०, गिलोयके | का चूर्ण मिलाकर नींबूके रसमें घोट कर धूपमें रसकी १० भावना देकर फिर सबके वजन से सुखावें । इसी प्रकार ७ भावना दें। इसके सेवन भाधा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर चनेके बराबर से मन्दाग्नि, अजीर्ण और कब्ज दूर होता है। इससे गोलियां बनाकर छायामें सुखा लेवे । इसका नाम क्षुधा दो गुनी हो जाती है। यह आहारको पचाता "अजीर्णबल-कालानल" रस है। बहुत समयसे भी है और मलका रेचन भी करता है। (मात्रागष्ट हुई अग्नि प्रदीप्त करनेके लिये यह अत्युत्तम | २ माशे.) औषध है। यह रस आमवात रोगके कुलको विध्वस्त । अञ्जनभरथरस:-प्रयोग. सं.८९०३ देखिए। कर देता है। इसके अतिरिक्त यह तिल्ली, पाण्डु, । अलनरसा-प्रयोग. सं. ८९०४ तथा ८९१७ प्रमेह, अफारा, कब्ज, सुतिका रोग, ग्रहणी विकार, देखिए। श्वास, खांसी, प्रतिश्याय, राजयक्ष्मा, क्षय, अम्ल [२८२] अतिसारभसिंहो रसः विस, शूल, भगन्दर, अर्श, आठ प्रकारके उदर ___ (र. रा. मुं. अति.) रोग और दारुण यकृत्प्लीहा रोगको भी नष्ट करता | पारदं गन्धकं शुद्धमहिफेनं च तत्समम । है, कण्ठ पर्यन्त भोजन करनेके पश्चात् यह रस मर्दयेद्विजया द्रावैर्धत्तूरस्य रसैः पुनः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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