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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी-विलासे गन्ध, इन सभी तथा और भी गुणोंके रहते हुए यदि तुम्हारी पक्षिप्रवर हंसके साथ मैत्री भी हो तो वह अत्यन्त ही उन्नतिका लक्षण होगा। टिप्पणी-गुणी व्यक्ति यदि अपनेसे अधिक गुणवान्के सहवासमें प्रेमपूर्वक रहता है, उससे ईर्ष्या नहीं करता तो उसकी गुणवत्तामें चार चाँद लग जाते हैं। अन्यथा सर्वगुणसम्पन्न होनेपर भी दुर्जनोंका संग हुआ और सज्जनोंसे द्वेष करने लगा तो नष्ट होनेका भी भय रहता है। इसी भावको इस कमलान्योक्तिसे व्यक्त किया है। कमलका निर्मल जलमें जन्म, भगवान्के हाथमें निवास, लक्ष्मीजीका उसपर निवास, मनोमोहक सुगन्ध आदि और भी गुण एकसे एक उत्तम हैं। साथ ही यदि वह अपने सहवासी हंससे प्रेमका व्यवहार भी करता है अर्थात् उसके गुणोंपर ईर्ष्या नहीं करता तो यह उसके अभ्युदयका ही लक्षण है। इसमें द्विज ( पक्षी, ब्राह्मण ) और हंस ( मराल, परमहंस ज्ञानी ) ये शब्द द्वयर्थक हैं । इनसे यह भी अर्थ ध्वनित होता है कि अच्छे कुलमें जन्म, भगवान्के प्रति भक्ति, श्रीसम्पन्नता, देवताओंपर आस्तिक भाव रहते हुए कोई व्यक्ति यदि किसी परमहंस ( ज्ञानवान् ) व्यक्तिसे आस्थापूर्वक सत्सङ्ग भी करता है तो उसकी उन्नति ( मोक्षप्राप्ति ) निश्चित ही है । 'अम्बुज' पदसे कमलका जड़जन्य होनेसे किंचित् अविवेकित्व और 'हंस' पदसे मरालका तदपेक्षया उत्तमत्व सूचित होता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि संगति सर्वदा अपनेसे उच्चकी करनी चाहिये । इसमें काव्यलिंग अलंकार है । शिखरिणी छन्द है ॥३८॥ व्यक्तिका उचित सम्मान करनेके लिये विवेक होना चाहियेसाकं ग्रावगणैलुठन्ति मणयस्तीरेऽर्कबिम्बोपमाः, नीरे नीरचरैः समं स भगवान् निद्राति नारायणः । एवं वीक्ष्य तवाविवेकमपि च प्रौढिं परामुन्नते? किं निन्दान्यथवा स्तावनि कथय क्षीरार्णव त्वामहम् ॥३४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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