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पण्डितराज जगन्नाथ स्थिति एवं कार्यकाल
रसगंगाधरके एक पद्यमें नूरदीन शब्द आया है। इससे कुछ लोगोंने कल्पना की है कि पण्डितराजका प्रवेश मुगलदरबारमें अकबरके राज्यकालमें ही हो गया था। यह भी कहा जाता है कि जयपुर नरेश मिर्जा जयसिंह मुसलमान काजियोंको निरुत्तर करनेके लिये इन्हें जयपुर ले गये थे और उन्हींके द्वारा इनका मुगलदरबारमें प्रवेश हुआ था। यद्यपि यह माननेमें कोई विप्रतिपत्ति हमें नहीं कि पंडितराजका प्रादुभवि अकबरके राज्यकालमें (१६०५ ई० के अन्दर ) ही हो गया था। किन्तु यह विश्वास नहीं होता कि अत्यन्त अल्पवयमें ही ये दरबारमें प्रवेश पा गये होंगे । श्री लक्ष्मण रामचन्द्र वैद्यने यह सिद्ध किया है कि नूरुद्दीनमुहम्मद जहाँगीरका नाम था और पंडितराज जहाँगीरके राज्यकालमें दरवारमें थे। ___ पण्डितराजने चार राजाओंका उल्लेख किया है जिनका समय इतिहासकारों द्वारा असन्दिग्धरूपमें निर्णीत है-नूरदीन (जहाँगीर १६०५से १६२७ ई०.), शहाबदीन (शाहजहाँ १६२७से १६५७ ई.) उदयपुरके राणा जगत्सिंह (१६२८ से १६५९ ई०) और प्राणनारायण (भूटानके राजा १६३३ से १६५६ ई० ) इनके अतिरिक्त आसफविलासमें कश्मीर के नवाब आसफखानका ( यह नूरजहाँका भाई था, इसकी मृत्यु १६४१ ई. में हुई) और एक स्फुट पद्य में नेपालनरेशका भी उल्लेख है। इससे यह तो
श्यामं यज्ञोपवीतं तब किमिति मषीसंगमात्कुत्र जातः सोयं शीतांशुकन्यापयसि कथमभूत्तज्जलं कज्जलाभम् । व्याकुप्यन् नूरदीनक्षितिरमणरिपुक्षोणिभृत्पक्ष्मलाक्षी
लक्षाक्षीणाश्रुधारासमुदितसरितां सर्वतः संगमेन ॥ २. स्पृशति त्वयि यदि चापं स्वापं प्रापन् न केऽपि नरपालाः । शोणे तु नयनकोणे को नेपालेन्द्र तव सुखं स्वपितु ॥
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