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भामिनी-विलास पण्डितराज आन्ध्रदेशीय तैलंग ब्राह्मण थे। इनकी जाति वेल्लनाडु या वेलनाटीय थी। इनके पिताका नाम पेरुभट्ट या पेरमभट्ट
और माताका नाम लक्ष्मी था। इनका उपनाम "त्रिशूली" भी था। इनके पिता पेरुभट्ट अद्वितीय विद्वान् थे, जिन्होंने ज्ञानेन्द्र भिक्षुसे वेदान्त, महेन्द्रसे न्याय-वैशेषिक, देवसे मीमांसा और शेष वीरेश्वरसे महाभाष्य (व्याकरण ) का गहन अध्ययन किया था। इसके अतिरिक्त भी वे सभी विद्याओंमें प्रवीण थे । पण्डितराजने अपने पितासे ही सर्वशास्त्रोंका अध्ययन किया था और पिताकी भाँति ही वे समग्र शास्त्रोंपर पूर्ण अधिकार रखते थे, जैसा कि उनके ग्रन्थोंसे ही प्रकट होता है । मुगलसम्राट शाहजहाँने इन्हें "पण्डितराज" की उपाधिसे अलंकृत किया था । युवावस्थामें ही इनका प्रवेश मुगलदरबारमें हो गया था और बहुत समय तक वहाँ के शाही ऐश्वर्यका उपभोग इन्होंने किया। १. "तैलङ्गान्वयमङ्गलालयमहालक्ष्मोदयालालितः"
(प्राणाभरण) "तैलङ्गकुलावतंसेन पण्डितजगन्नाथेन-"
( आसफविलास )। २. "श्रीमत्पेरमभट्टसूनुरनिशं” (प्रा० भ० ) "तं वन्दे पेरुभट्टाख्यं
लक्ष्मीकान्तं महागुरुम्” ( रसगंगाधर )। ३. देखिये कुलपतिमिश्रका संग्रामसार १ । ४ । ४. देखिये रसगंगाधरका प्रथम पद्य । ५. "सार्वभौमश्रीशाहजहाँप्रसादाधिगतपण्डितराजपदवीकेन............
जगन्नाथेन-" ( आसफविलास ) ६. "दिल्लीवल्लभपाणिपल्लवतले नीतं नवीनं वयः" ( भामिनीविलास)।
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