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देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपा पशवो वदन्ति । सा नो मन्द्रेमूपर्ज दुहाना धेनुर्वागस्मानभिसुष्टुतैतु ॥
पण्डितराज जगन्नाथ
परिचय
प्राचीन भारतीय कवियों एवं शास्त्रकारोंका जीवन-वृत्त प्रायः अनुमानका ही विषय रहा है । पाश्चात्य स्थूलदर्शी आलोचकोंकी दृष्टि यह उनकी ऐतिहासिक दृष्टिका अभाव भले ही रहा हो; किन्तु उन कवियों या शास्त्रकारोंने जीवनको ही महत्त्व प्रदान किया, जीवनीको नहीं । प्राचीन कालमें लिखे गये ग्रन्थोंपर टीकाएँ, टिप्पणियाँ, आलोचना, प्रत्यालोचना, खण्डन, मण्डन सभी कुछ हुआ, किन्तु किसी भी आलोचकने अपना समय यह खोजने में व्यर्थ नहीं गँवाया कि अमुक ग्रन्थकारने यह ग्रन्थ कब लिखा । उसने केवल यही देखा कि ग्रन्थकार ने क्या लिखा और क्यों लिखा ? यही परिपाटी भारतीय ग्रन्थकारों की रही है । जिस किसीने अपना परिचय दिया भी है तो अत्यन्त सूक्ष्म । पण्डितराज जगन्नाथ भी इसके अपवाद नहीं हैं । सौभाग्यसे वे इतिहास - प्रसिद्ध राजवंशोंसे संबद्ध रहे हैं और अपने पूर्ववर्ती सभी साहित्यकारों की प्रायः उन्होंने आलोचना की है, अतः उनके विषय में कुछ जानकारी प्राप्त करने के साधन अपेक्षाकृत अधिक सुलभ हैं ।
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