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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अन्योक्तिविलासः १७ अन्वय-अमन्दमरन्दे, दलदरविन्दे, येन, दिनानि, अनायिषत, हा, तेन, खल, मधुकरेण, कुटजे, ईहा, कथं, तेने । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दार्थ — अमन्दमरन्दे = अतुलपरागवाले । । दलदर विन्दे = खिले कमलोंमें । येन = जिसने । दिनानि = दिनोंको । अनायिषत बिताया है । हा = खेद है । तेन खलु = उसी । मधुकरेणः = भौंरेने । कुटजे = कुरैयाके पौधों में । ईहा = इच्छा । कथं तेने - कैसे व्यक्त की ॥ ९ ॥ = , टीका - अमन्दमरन्दे न मन्दम् अमन्दं प्रचुरं, मरन्दं = मकरन्दः यस्मिन् तस्मिन् प्रचुरपरागपूर्णे इत्यर्थः । दलंश्चासौ अरविन्दश्च दलद रविन्दः तस्मिन् = विकसितकमले, येन मधुकरेण, दिनानि जीविताहानि अनायिषत = व्यतीतानि । हा इति खेदे । तेन खलु = तेनैव । मधुकरेण भ्रमरेण । कुटजे = तन्नामके तिक्तवृक्षे, निष्परागे । ईहा वाञ्छा । कथं = किमर्थं । तेने = विस्तृता । भावार्थ - छलकते हुए पुष्परससे परिपूर्ण विकसित कमलमें रसास्वादन करते जिसके दिन बीते, खेद है कि उसी मधुकरने इस निष्पराग और कड़वे कुटज वृक्षमें आनेकी इच्छा कैसे की ? टिप्पणी- भयानक विपत्ति आनेपर भी तुच्छ व्यक्तिकी शरण में नहीं जाना चाहिये । उससे कुछ लाभ होना तो असंभव ही है, उल्टे लोकमें अपवाद होता है - इसी भावको इस अन्योक्ति द्वारा व्यक्त किया है - जिस भ्रमरने खिले हुए कमलमें जीवनभर रहकर तृप्तिपर्यन्त इसका स्वाद लिया है, अर्थात् जिसने जीवनभर किसी सार्वभौमके आश्रय में रहकर अनुपम ऐश्वर्यका उपभोग किया है, वही अब इस कुटज वृक्षके पास, जिसका स्वाद भी कड़वा है और जिसमें पराग का नाम भी नहीं है, आ कैसे पड़ा ? इससे यह भी व्यक्त होता है कि परिस्थिति सदा एक सी नहीं रहती, महानसे महान् ऐश्वर्यंके उपभोक्ताको भी दाने-दाने के लिये तरसना पड़ सकता है । कुटजको हिन्दीमें कुरैया या कुरा, मराठी में कुडा तथा पर्वतीय भाषा में "कुर्ज या तितपाती" कहते हैं । २ For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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