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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी - विलास है, और उसकी वह कृति ही काव्य है । जो कवि अनुभूतियोंकी जितनी अधिक गहराई तक पहुँचता है और जिसकी वर्णनामें जितनी अधिक स्वाभाविकता होती है वह उतना ही अधिक पाठकके हृदयमें अपना स्थान बना लेता है । मुक्तक-काव्य काव्य के दो प्रकार हो सकते हैं-गद्य और पद्य । गद्यकी अपेक्षा पद्य काव्य अधिक रुचिकर और प्रभावक होता है; क्योंकि कलात्मकता लानेमें छन्द अत्यन्त उपयोगी होते हैं । संस्कृत-साहित्य अत्यन्त मर्यादापूर्ण साहित्य है । इसमें प्रत्येक परिस्थितिके लिये कुछ न कुछ मर्यादा अवश्य बनी हुई है । उससे बाहर संस्कृतका कवि जा ही नहीं सकता । वह निरंकुश हो सकता है; किन्तु उस निरंकुशता की भी सीमा है । काव्यके सौन्दर्य में वृद्धि के हेतु वह उसी सीमातक जाता है । इस सीमाके अन्तत काव्यके जितने भेद हो सकते हैं उनमें मुक्तक भी एक है । मुक्तकका स्वरूप हमें सर्वप्रथम अग्निपुराण में मिलता है- "मुक्तकं श्लोक एकैक चमत्कारक्षमं सताम् ।" अर्थात् मुक्तक वह काव्य है जिसमें एक-एक श्लोक स्वतंत्र रूपसे अपने अर्थ प्रकाशनमें पूर्णं समर्थ होकर सहृदयोंके हृदय में चमत्कारका आधायक हो । अग्निपुराणके अनन्तर भी प्रायः सभी काव्यशास्त्रप्रतिपादकोंने इसका यही रूप स्वीकार किया है । ध्वन्यालोककार आनन्दवर्धन - " मुक्तकेषु प्रबन्धेष्विव र सबन्धाभिनिवेशिनः कवयो दृश्यन्ते" इस अंशकी व्याख्या करते हुए 'लोचन' - कार श्री अभिनवगुप्त कहते हैं "मुक्तमन्येनालिङ्गितम् । तस्य संज्ञायां कन् । तेन स्वतन्त्रतया परिसमाप्त निराकांक्षार्थमपि प्रबन्धमध्यवर्ती मुक्तकमित्युच्यते ।" किन्तु इसमें यह सन्देह रह जाता है कि मुक्तक प्रबन्ध मध्यवर्ती कोई For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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