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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ भामिनी-विलासे अर्थ-सज्जनोंका सङ्ग दुर्बुद्धिको दूर करता है, चित्त को निर्मल करता है, चिरन्तन ( जन्मजन्मान्तरोंसे संचित ) पापोंको नष्ट कर देता है और प्राणियोंमें दयाको बढ़ाता है । इस प्रकार यह सत्संग कौन सा कल्याण नहीं कर देता ॥ १५ ॥ अनवरतपरोपकारव्यग्रीभवदमलचेतसां महताम् । आपातकाटवानि स्फुरन्ति वचनानि भेषजानीव ॥१६॥ अर्थ-निरन्तर दूसरोंके उपकारकी चिन्तासे व्यग्र हो रहा है स्वच्छ अन्तःकरण जिनका, ऐसे सत्पुरुषोंके वचन, ( आपातकाटवानि ) प्रारम्भ में कड़वे भले ही हों किन्तु औषधिकी तरह प्रभावकारी होते हैं । टिप्पणी-औषध भी पीते समय कड़वी लगती है किन्तु उसका परिणाम अत्यन्त सुखद होता है। ऐसे ही परोपकारी सज्जनोंके वचन कठोर भी हों तब भी कल्याणकारक ही होते हैं । यह उपमा अलंकार है और आर्या छन्द है ॥ १६ ॥ व्यागुञ्जन्मधुकरपुञ्जमजुगीता न्याकण्य स्तुतिमुदयन्नयातिरेकात् । भाभूमीतलनतकन्धराणि मन्ये शरण्येऽस्मिन् अवनिरुहां कुटुम्बकानि ॥१७॥ अर्थ-मैं समझता हूँ कि इस वनमें वृक्षोंके समूह, मधुर-मधुर गंपते हुए भौरों के झुण्डोंसे गाई हुई स्तुतिको सुनकर, हृदयमें उगते हुए विनयके भारसे पृथ्वीतल तक झुक गई हैं शाखाएँ जिनको ऐसे, हो गये हैं। टिप्पणी-सज्जन व्यक्ति यदि अपनी स्तुति (प्रशंसा ) सुनता है तो मम्र हो जाता है और दुर्जनकी जितनी ही प्रशंसा की जाय वह उतना ही अकड़ता है । वृक्ष सज्जन है अतः वे अपनी प्रशंसा सुनकर झुक रहे For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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