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अन्योक्तिविलासः
१७७ नहीं होता, वैसे ही ज्ञानके बिना यति ( संन्यासी) भी शोभित नहीं होता।
सन्तः स्वतः प्रकाशन्ते गुणा न परतो नृणाम् ।
आमोदो न हि कस्तूर्याः शपथेन विभाव्यते ॥१३॥ अर्थ-मनुष्यमें यदि गुण होते हैं तो वे स्वयं ही प्रकाशित हो जाते हैं, उनके प्रकाशके लिये किसो दूसरोंकी आवश्यकता नहीं होती। सौगन्ध खानेसे कस्तूरीकी सुगन्ध नहीं प्रतीत होती ।। १३ ॥ __टिप्पणी तात्पर्य यह है कि हम लाख शपथ खाकर कहें कि यह कस्तूरी ही है, पर कोई विश्वास न करेगा यदि उसमें सुगन्ध न हो, ऐसे ही मनुष्य में गुण हों तो स्वयं ही उसको ख्याति हो जायगी, यदि गुण नहीं है तो लाख प्रयत्न करनेपर भी कुछ नहीं होगा। अयि षत गुरुगर्व मा स्म कस्तूरि यासी
रखिलपरिमलानां मौलिना सौरभेण । गिरिगहनगुहायां लीनमत्यन्तदीनं
स्वजनकममुनैव प्राणहीनं करोषि ॥१४॥ अर्थ हे कस्तूरी ! सम्पूर्ण सुगन्धोंमें श्रेष्ठ अपनी सुगन्धका बहुत बड़ा घमण्ड न करना। इस सुगन्धके कारण ही तुमने पहाड़की अंधेरी गुफाओंमें छिपे हुए, अत्यन्त सीधे-सादे बेचारे अपने पिता ( कस्तुरीमृग ) को मरवा डाला ॥ १४ ॥
दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति _चेतश्चिरन्तनमघं चुलुकीकरोति । भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति
सङ्गः सतां किमु न मङ्गलमातनोति ॥१५॥
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