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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्योक्तिविलासः जालों )को फैलाकर जाल (जाला ) लगाती हुई वहाँ के विवरों (छिद्रों)-को ढक देती है उसीप्रकार सज्जन पुरुष भी शून्य ( हृदयहीन ) मूर्ख जनोंमें अपने गुणों ( वाग्मित्व आदि)का प्रसार करते हुए अपने गुण-जालों ( समूहों) से उन मूर्योके विवरों ( दोषों )-को ढक देते हैं । अर्थात् सज्जनके सहवाससे मूर्योके हृदयमें भी गुणोंका प्रसार होने लगता और उनके दोष छिप जाते हैं । यहाँ शून्य, गुण, विवर और मुद्रण ये पद श्लिष्ट हैं, जिनसे सज्जन और मकड़ोका सादृश्य दिखाया गया है । अतः श्लिष्टोपमा अलंकार है। आर्या छन्द है ॥५॥ खलमहिमा खलः सज्जनकार्पासरक्षणैकहुताशनः । परदुःखाग्निशमनो मारुतः केन वण्यंताम् ॥८६॥ अन्वय-सज्जन""हुताशनः, परदुःखाग्निशमनः, मारुतः, खलः, केन, वर्ण्यताम् । शब्दार्थ-सज्जनकार्पास = सज्जनरूप रुईके, रक्षणकहुताशनः = बचानेमें एकमात्र अग्नि जैसा । परदुःखाग्निशमनः = दूसरोंके दुःखरूप अग्निको बुझानेवाला, मारुतः = वायु ( जैसा) । खलः = दुर्जन । केन वर्ण्यताम् = किससे वर्णन किया जाय ? ( अर्थात् ऐसे खलका कौन । वर्णन करे )। __टीका-सजना एव कार्पासाः = तूलविशेषाः तेषां रक्षणे = परिपालने, विरोधिलक्षणया तु विनाशने, एकश्चासौ हुताशनश्च । एवंभूतः । यथा कार्पासरक्षणे हुताशनस्यासम्भाव्यत्वं तथैव सज्जनरक्षणेऽस्यापीतिभावः । एवमेव । परेषाम् = अन्येषां यत् दुःखं = शोकः तदेवाग्निः तस्य शमनः = निर्वापकः । विरोधिलक्षणया तु दीपनः । मारुतः For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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