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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्योक्तिविलासः १४३ दूसरेमें आधान न होना अवज्ञा अलङ्कार है। जैसे यहाँ जगत्के मिथ्यात्वप्रतिपादक वेदान्त-शास्त्रमें निष्णात होने पर भी वेदान्तका फलभूत वैराग्यरूप गुण खल में नहीं आया। ऐसे ही घुला देना जलका गुण है, उसमें निरन्तर रहनेपर भी मैनाक घुल न सका। यही विपर्यय हुआ। अनुष्टुप छन्द है ॥८२॥ अति गुणवत्ता भी विपत्तिका कारण है नैगुण्यमेव साधीयो धिगस्तु गुणगौरवम् । शाखिनोऽन्ये विराजन्ते खण्ड्यन्ते चन्दनद्रुमाः ॥८॥ अन्वय-नैगुण्यम् , एव, साधीयः, गुणगौरवम् , धिक् अस्तु, अन्ये, शाखिनः, विराजन्ते, चन्दनद्रमाः, खण्ड्यन्ते । ___ शब्दार्थ-नैर्गुण्यम् एव = निर्गुण ( गुणहीन ) होना ही साधीयः = श्रेष्ठ है। गुणगौरवम् = गुणोंके महत्त्वको। धिगस्तु = धिक्कार है। अन्ये शाखिनः = दूसरे वृक्ष । विराजन्ते = खड़े रहते हैं। चन्दनद्रुमाः = चन्दनके पेड़ । खण्ड्यन्ते = काटे जाते हैं । टीका-निर्गुणस्य भावः नैगुण्यं गुणहीनत्वं मौढयमितियावत् । एव साधीयः = साधु ( साधीयान् साधुबाढयो:--अमरः ) अस्तीति शेषः । गुणानां गौरवं गुणगौरवं = गुणज्ञतेतियावत् । धिक् अस्तु । तदेव द्रढयति अन्ये = इतरे । शाखाः सन्ति येषां ते शाखिनः = वृक्षाः (वृक्षो महीरुहः शाखी--अमरः) विराजन्ते = यथावत्तिष्ठन्ति । किन्तु । चन्दनद्रुमाः = मलयजवृक्षाः। खण्ड्यन्ते = छिद्यन्ते। सुगन्धिरूपगुणवत्तयेति भावः। भावार्थ-गुणहीन होना ही अच्छा है, गुणवत्ताको धिक्कार है। वनमें अन्य वृक्ष तो ज्योंके त्यों खड़े रहते हैं; किन्तु चन्दनके वृक्ष ही काटे जाते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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