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अन्योक्तिविलासः
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जाता है । निखिलरसायनमहितः = समग्र रसायनोंमें श्रेष्ठ । लशुनः = लहसुन । उग्रेण = तीव्र । गन्धेन इव = गन्धसे जैसे ।
टीका -अमितः = असंख्याः गुणाः यस्य सः अभितगुणः = विविधगुणगणालंकृतः । अपि । पदार्थः = वस्तु, एकेन दोषेण । निन्दितः गर्हितः । भवति । निखिलानां = सर्वेषां रसायनानाम् = औषधानां महितः = पूजितः । श्रेष्ठ इति यावत् । एवंभूतः । लशुनः = तन्नामकं महौषधम् । उग्रेण = तीव्रेण । गन्धेन = घ्राणेन्द्रियतर्पणविषयभूतेन । इव ।
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भावार्थ - सर्वगुणसम्पन्न पदार्थ भी एक ही दोषके कारण कभी कभी निन्दनीय हो जाता है । जैसे संपूर्ण रसायनोंमें श्रेष्ठ लहसुन केवल तीव्र दुर्गन्धके कारण गहित समझा जाता है |
टिप्पणी – अच्छेकी अपेक्षा बुरेका प्रभाव शीघ्र पड़ता है । यदि किसी में दोष अधिक हों और गुण कम हों तब तो कहना ही क्या है; शेष गुणों को दबा ही डालेंगे, किन्तु गुणोंका बाहुल्य होनेपर भी प्रबल दोष यदि एक भी हो तो वह सारे गुणोंको बेकार करके पदार्थको निन्दनीय वना देता है । जैसे लहसुन ।
आयुर्वेद में लशुनको अत्यन्त ही गुणकारी रसायन माना गया है । इसीलिये उसे महौषध या रसराज कहा जाता है । किन्तु ऐसे गुणमय पदार्थको सामान्यतः शास्त्रकारोंने अभक्ष्य कहा है
लशुनं गृञ्जनं चैव पलाण्डु कवकानि च । अभक्ष्याणि द्विजातीनाममेध्यप्रभवाणि च ॥ मनु० ५|५| क्योंकि उसकी दुर्गन्ध अत्यन्त ही तीव्र होती है । केवल एक दुर्गन्ध-दोषके कारण उसके सारे गुण व्यर्थ हो जाते है ।
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तुलना - कालिदासके "एको हि दोषो गुणसन्निपाते निमज्जतीन्दोः करणेष्विवांक:" इस श्लोकपर किसी कविकी उक्ति