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भामिनी-विलासे तबतक अच्छी जातिवाला या तारसहित बाँसका डण्डा कुछ भी महत्त्व नहीं रखता।
टिप्पणी-“संसर्गजा दोषगुणाः भवन्ति" जो व्यक्ति जैसी सङ्गति करता है धीरे-धीरे उसके गुणदोष अवश्य ही उसपर अपना प्रभाव जमा लेते हैं । इसलिये महान्की महत्ता भी तभी रक्षित रहती है जबकि वह संगति भी महान्की ही करे । इसी भावको इस पद्य द्वारा व्यक्त किया गया है-अच्छे वंशमें उत्पन्न और अच्छे गुणोंसे युक्त व्यक्ति यदि दुर्जनोंकी संगतिमें रहेगा या सज्जनोंके संसर्गमें न रहेगा तो उसका कोई भी आदर न करेगा। जैसे बाँसका डण्डा सामान्यतः डण्डा ही है। चाहे अच्छे बाँसका हो या तार उसमें बँधे हों तब भी वह कोई आदरका पात्र नहीं। किन्तु वही जब तुम्बेसे जोड़ दिया जाय तो वीणाका रूप धारण कर लेता है जिसकी झंकारसे जगत् मोहित हो जाता है। यही सत्सङ्गतिका महत्त्व है। ___ इस पद्यको रसगंगाधरमें वैधयंप्रयुक्ता प्रतिवस्तूपमा अलङ्कारके उदाहरणमें रक्खा गया है। इसमें वंशभव और गुणवान् पद श्लिष्ट हैं जो पुरुष और वीणादण्डके विशेषण हैं। अतः यह श्लेषसे अनुप्राणित है । गीतिछन्द है ॥७५॥ दोष एक भी बुरा है
अमितगुणोऽपि पदार्थो दोषेणैकेन निन्दितो भवति । निखिलरसायनमहितो गन्धेनोग्रेण लशुन इव ॥७६।।
अन्वय-अमितगुणः, अपि, पदार्थः एकेन, दोषेण, निन्दितः, भवति, निखिलरसायनमहितः, लशुनः, उग्रेण, गन्धेन, इव ।
शब्दार्थ-अमितगुणः अपि = असीम गुणोंवाला भी। पदार्थः = वस्तु । एकेन दोषेण = एक ही दोपसे । निन्दितः भवति = निन्दनीय हो
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